कविता – ख्वाबों की ताबीर
इक ज़रा सी ख्वाहिश को
लगा कर गले
कर लेंगे हम बेसाख्ता
ख्वाबों और ख्यालों से गुफ्तगू
उड़ जाएंगे दूर गगन में
पाखी से पर लिए
नर्म मुलायम श्वेता धवल
आसमां पर रखे ख्वाबों को
देखेंगे नज़दीक से
ख्वाबों की ताबीर को
मुस्कुरा कर सजल
नयनों की कोरों से धो पोंछ कर
रख लेंगे अपने तकिए तले
अनमोल सी अमानत की तरह