ग़ज़ल – ये घर और पवित्र हुआ
आप हमारे घर आये क्या यह घर और पवित्र हुआ
आपने रंग भरे जो इसमें, नक्शा और सचित्र हुआ
जीवन में जब आप नहीं थे, सब कुछ फीका-फीका था
आपके छूते ही तन-मन को, रँग-ढँग और विचित्र हुआ
गंधहीन निर्जीव था गुलशन, कागज के फूलों जैसा
आप जो गुजरे इन गलियों से, जर्रा जर्रा इत्र हुआ
आपके नाम से ही अब मुझको ये संसार बुलाता है
जो था कल तक जान का दुश्मन आज वो गहरा मित्र हुआ
आपने इस बस्ती के लोगों को ऐसा वरदान दिया
‘शान्त’ अवध में रहने वाला हर कोई सौमित्र हुआ
— देवकी नन्दन ‘शान्त’