मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

याद आती पाठशाला, पटरी को पढ़ते कर गई।

चाक जब होते मधुर थे, डगरी को हँसते कर गई।

आज जाने क्या हुआ है, खुन्नस बहुत है पीठ पर-

पाठ कोई और पढ़ता, नगरी को  चिढ़ते कर गई॥-1

रे मदरसा चल बता, कैसी पढ़ाई हो रही।

नाम है तेरा बहुत, पर धन उगाई हो रही।

ढ़ूढ़ता मग मगहरी, सु दोहा कहाँ कबीर का-

सूर अरु रसखान मन, क्योंकर धुनाई हो रही॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ