गीत – क्यों ऊसर जमीन पर मैंने
क्यों ऊसर जमीन पर मैंने, आशाओं के बीज बहाए ?
मायामय कुरंग के पीछे, क्यों मन के तुरंग दौड़ाए ?
घोर अमा थी ,तम गहरा था ।
उर पट पे भय का पहरा था ।
क्यों ऐसी विपरीत दशा में
विधु दर्शन को मन ठहरा था ।
हाय भला इस हठी हृदय के,बहकावे में हम क्यों आये ?
क्यों ऊसर……………………………………………
फिर बसंत सेमल बौराए।
डाल डाल पे कुसुम सुहाए ।
देख अरुण शोभा फूलों की,
दूर- दूर से पक्षी आये ।
गंध ,स्वाद से मुक्त पुष्प को देख,बहुत ही खग पछताये ।
क्यों ऊसर………………………………………..
आस्तीन का साँप आदमी ।
पाप से बड़ा पाप आदमी ।
सारे जीव चर अचर व्याकुल,
सिद्ध हुआ अभिशाप आदमी ।
विध्वंसक इंसान देखकर, नित्य यह धरा अश्रु बहाये ।
क्यों ऊसर ………………………………………
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी