“दिल की बात , लबों पे आई ” !!
ऊंची सोच ,
भेद गहरा है !
अभिव्यक्ति पर
मौन पहरा है !
मनमानी है ,
भेदभाव है !
नंगे सिर ,
कुछ के सेहरा है !
हुई अनसुनी ,
बनी रुसवाई !!
सरकारों से
बंधा प्रशासन !
कोरे वादे ,
मिथ्या वाचन !
रायशुमारी ,
यहां कहां है !
अपने किये का ,
होता वादन !!
आहत आहें ,
हैं रंग लाई !!
हैरत में
जनता ज्यादा है !
उन्हें फैसला ,
कहाँ आता है !
सोच जजों की ,
जज ही जाने !
अंतर्कलह ,
किसे भाता है !!
दें प्रजातन्त्र की ,
सभी दुहाई !!
राजनीति की
बू छाई है !
सब के सर ,
चढ़ चढ़ आई है !
कोई नहीं ,
अछूता लगता !
बुद्धि सभी की ,
भरमाई है !!
है वर्चस्व की ,
छिड़ी लड़ाई !!
आदरणीय भगवती प्रसाद व्यास जी बहुत सुंदर भावयुक्त कविता . बधाई आप को.