लेख– जेहाद के नाम पर खून के प्यासे भाई औऱ शहीद नहीं कहलाते माननीय जी!
एक तरफ़ हमारी सरकार आतंककवाद की क़मर तोड़ने को प्रयासरत है, वहीं दूसरी ओर देश के कुछ युवा दिग्भ्रमित होकर आतंकवाद की शरणों में जा रहें हैं। जो देश के लिए चिंता का विषय है। इसके साथ अगर कश्मीर की वादियों में अमन बहाली के बीच उसे पटरी से उतारने का प्रयास भी होता रहता है, तो वह दुर्भाग्यपूर्ण है। केंद्र की सत्तारुढ़ भाजपा के सहयोग से चल रही जम्मू सरकार के पीडीपी विधायक ने शर्मनाक बयान दिया है, जिसकी जितनी आलोचना की जाएं, वह कम है। एजाज़ अहमद ने अपने बयान में कहा कि आतंकवादी शहीद होने के साथ उनके भाई औऱ आतंकवादियों के बच्चे उनके बच्चे हैं। उनके इस बयां का निहितार्थ निकाले, तो इस बयां का सीधा अर्थ देश की व्यवस्था को ठेंगा दिखाना है। विधायक एजाज़ अहमद औऱ हुर्रियत जैसे नेताओं के कारण ही कश्मीर की वादियां तीन दशकों से खून की होली से सनी हुई हैं। फ़िर विधायक की नरमी और संवेदनशीलता आख़िर क्यों? जब नापाक इरादों के लोग अपने भाई-बहनों का खून बहाने में तनिक संकोच नहीं करते। फ़िर उन्हें मानव नहीं दानव ही कहा जाएगा। जो धर्म और जेहाद के नाम पर खून बहाते है, उनका हश्र क्या होना चाहिए, यह सब को पता है। धर्म और जेहाद के नाम पर नापाक इरादों का साथ देने वाले और दुश्मन मुल्क का साथ देने वाले देश के भाई-बहन और बच्चें कैसे हो सकते हैं। यह इन रहनुमाओं को समझना होगा।
इससे देश ही नहीं वैश्विक परिदृश्य अवगत है, कि जम्मू की वादियां अशांत है, औऱ देश इन नापाक मंसूबों के कत्लेआम से पीड़ित है, तो उसके पीछे किसका हाथ है, औऱ कौन इस ख़ूनी खेल में आतंकियों का साथ देता आ रहा है, फ़िर माननीय विधायक इस बात से बेख़बर कैसे हैं? वक्त की मांग अब बन चुकी है, कि ख़ूनी खेल का कभी दबी आवाज़ तो कभी मुखर आवाज़ में समर्थन करने वाले कश्मीरी नेताओं और हुर्रियत नेताओं पर नकेल कसी जाए, क्योंकि ये आतंकियों का मनोबल बढ़ाने का काम करते हैं। एजाज़ अहमद कोई पहली शख्सियत नहीं जो आतंकियों के समर्थन में बयान दिया हो, इसके पूर्व भी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारुख अब्दुल्ला पत्थरबाजों के समर्थन में बयान दे चुके हैं। इतना ही नहीं फ़ारुख अब्दुल्ला पत्थरबाजों के हिमायती ही नहीं देश को बांटने की इच्छाशक्ति पालने वाले हुर्रियत नेताओं से बातचीत करने को स्यापा करते हैं। जिन आतंकियों की वज़ह से देश की आवाम और सेना मुसीबतों से चारों पहर घिरी रहती हो, वे देश के लिए भाई-बहन नहीं हो सकती। जब हमारी सरकारें जम्मू कश्मीर को आतंक मुक्त बनाने की दिशा में बढ़ रही है, तो फ़िर आतंकियों को भाई-बहन बताना आतंकियों की हिमाक़त को ओर बल देने से कम नहीं है।
ऐसे बयान देश की अस्मिता और अखंडता को तार-तार करना है। राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती कहती हैं, कि मुख्यधारा से ज़ुड़े जम्मू के वादियों के लोग हो, या अलगाववादी, उन्हें यह समझना चाहिए, जो कुछ मिल रहा है, या मिलेगा, वह हिंदुस्तान से ही मिलेगा। फ़िर ऐसे में विधायक का बयान कहीं न कहीं गंदी मानसिकता को दर्शाता है। जम्मू की सत्ता के सारथी भाजपा के लिए विधायक का बयान असहज करने वाला है, लेकिन केंद्र सरकार ने कहा कि वह आतंकवाद से कोई समझौता नहीं करने वाली है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहीं, कि देश को तोड़ने वाले को बुद्धि कब आएगी, और क्यों नहीं रहनुमाई व्यवस्थाएं देश को तोड़ने वालों का समर्थन करने वालों का पर कतरने का कार्य करती है। आतंकियों को शहीद औऱ भाई कहने का सीधा अर्थ यहीं होता है, कि हम अपने सैनिकों की शहादत और कुर्बानियों का अपमान कर रहें हैं, तो क्या देश की व्यवस्था सत्ता की सारथी बने रहने के लिए इन बयान बहादुरों को सुनती रहेगी? जो निहत्थे बच्चों और आवाम के खून की होली खेलते हो, वे शहीद और देश के शुभचिंतक कभी नहीं हो सकते। साथ में उन आतंकियों को भाई और शहीद बताने वाले भी देशहित के लिए कार्यरत नहीं कहे जा सकते।
अगर विधायक के बयान को राजनीतिक पैंतरेबाजी से पीड़ित माना जाए, तो भी यह देश औऱ समाज हित में नहीं माना जा सकता है। इस बयान को राजनीति से पीड़ित इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता फ़ारुख अब्दुल्ला समय-समय पर पत्थरबाजों का समर्थन करके कश्मीरी मतों पर अपना अधिकार ज़माने की कोशिश करते रहें हैं। फ़ारुख अब्दुल्ला ने यहां तक कहा था, कि पाक अधिकृत कश्मीर भारत कभी नहीं ले सकता। इस बयानबाजी का सीधा निहितार्थ अलगाववादियों का मनोबल बढ़ाना था। केंद्र की सत्तासीन दल अगर जम्मू की वादियों को पत्थरबाजों और आतंक की शरणस्थली से मुक्त कराना चाहती है, तो स्वार्थ की रोटी सेंकने वाले वादी के नेताओं के फन भी कतरनें होंगे, तभी वादियों में शान्ति बहाली की जा सकती है। यह देश का दुर्भाग्य ही है, कि हुर्रियत के नेता और राज्य के नेता खाते हिंदुस्तान का है, औऱ कुछ निजी स्वार्थ के लिए गुण नापाक इरादों का गाते हैं। सियासी मौकापरस्ती का कार्य जम्मू की वादियों में काफ़ी सक्रिय है, इसका पता इससे चलता है, कि जब सूबे में कोई दल सत्ता से बेदख़ल होता है, तभी देश विरोधी गतिविधियों का समर्थन देते हैं।
ये जेहादी और धर्म के नाम पर खून के प्यासे किसी के अपने लिए होते, क्योंकि गत वर्ष एजाज अहमद के घर पर भी आतंकियों ने ग्रेनेट से हमला किया था। शुक्र खुदा का था, कि कोई चपेट में नहीं आया। ऐसे बेतुके बयान अगर राजनीति से प्रेरित होकर दिए जाते हैं, तो यह राजनीति का कुरुप चेहरा व्यक्त करता है। इसके साथ सामाजिक परिवेश को निजी स्वार्थ के लिए तार-तार होने देना किसी ग्रन्थ में नहीं लिखा, फ़िर वह चाहें राजनीति की पुस्तक हो, या धर्म की यह इन नेताओं को समझना होगा। अगर जम्मू कश्मीर में मततंत्र को पार्टियां मजबूत करने केे लिए इंसानियत को दांव पर लगाने को तैयार हैं, तो यह राजनीति का सबसे निकृष्ट कार्य है। भाई को मारने वाला भाई नहीं हो सकता, और देश के निर्दोष बच्चों और आवाम के खून के प्यासे कभी शहीद नहीं हो सकते। शहीद वे होते हैं, जो देश को चैन और अमन प्रदान करने के लिए अपने जान की बाज़ी लगा देते हैं, न कि वे जो निर्दोष की जान जेहाद और धर्म का चश्मा लगाकर लेते है, यह विधायक महोदय को समझना होगा। इसके साथ अगर राजनीति की ख़ातिर देश को जलने के लिए एजाज़ और फ़ारुख अब्दुल्ला जैसे रहनुमा छोड़ रहें हैं, तो यह लोकतंत्र का मज़ाक और उसके साथ छलावा है। उनको इस प्रवृत्ति को छोड़ना होगा, नहीं तो देश और आवाम को सबक सिखाने के लिए ख़ुद आगे आना पड़ेगा।