इंसानियत – एक धर्म ( भाग – सैंतालिसवां )
इंसानियत – एक धर्म ( भाग – सैंतालिसवां )
तड़पते हुए कर्नल साहब अचानक फर्श पर गिर पड़े । उन्हें संभालने की कोशिश में नंदिनी भी फर्श पर लुढ़क पड़ी थी । अपनी भरपूर कोशिश के बावजूद वह कर्नल साहब के भारी भरकम शरीर को नहीं संभाल सकी थी । अलबत्ता उसके प्रयासों की वजह से कर्नल साहब का सिर बड़े धीमे से फर्श से टकराया था । फर्श पर जल बिन मछली की भांति तड़पते कर्नल साहब को देखकर नंदिनी तड़प उठी । उठी और दौड़ते हुए हॉल में रखे फोन पर झपट पड़ी । जल्दी जल्दी नंबर डायल किया और फोन पर ही सुबक पड़ी ” हैल्लो ! …”
दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आयी । फोन की घंटी दूसरी तरफ कुछ देर तक बजती रही और फिर फोन डिसकनेक्ट हो गया ।
नंदिनी ने जल्दी जल्दी दुबारा नंबर मिलाया लेकिन नतीजा फिर वही । शायद उस तरफ फोन के पास कोई नहीं था ।
जमीन पर तड़पते हुए कर्नल साहब को रामू भरसक संभालने की कोशिश कर रहा था लेकिन असफल ही साबित हो रहा था कि तभी अचानक कर्नल के साहब के जिस्म से पसीने की धार फूट पड़ी । मानो उनका पूरा बदन ही उनकी तड़प को महसूस करके आंसू बहा रहा हो । रामू ने कर्नल साहब का सिर अपनी गोदी में रख लिया था और उनके सीने को मसलते हुए उन्हें आराम पहुंचाने की कोशिश कर रहा था । अपने चेहरे पर उभर आये असीमित दर्द से जूझते हुए कर्नल साहब ने अपनी बाँहें उठाते हुए रामू की तरफ देखा और कुछ कहने का प्रयास किया । लेकिन उनके मुंह से स्वर नहीं निकल सके । झिलमिलाते आंसुओं के बीच उनकी आंखें रामू से कुछ कहने का प्रयास कर रही थीं और हाथ नंदिनी की तरफ ईशारा कर रहे थे । रामू उन्हें दिलासा देता हुआ उन्हें कुछ कहने का हौसला दे रहा था और उनकी बात समझने की कोशिश भी कर रहा था लेकिन शायद उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था । तभी नंदिनी तेज कदमों से उन्हीं की तरफ बढ़ती दिखाई दी । कर्नल साहब की उठी हुई बाँहें अचानक शिथिल पड़ गईं और फिर अगले ही पल दूसरी तरफ पलटते हुए कर्नल साहब का जिस्म शांत हो गया ।
तभी बाहर कार रुकने की आवाज आई । कर्नल साहब की तरफ बढ़ रही नंदिनी अचानक पलटी और तेज कदमों से बाहर की तरफ बढ़ी । डॉक्टर रस्तोगी कार से उतर रहे थे । उनके हाथों से उनका मेडिकल किट लेते हुए नंदिनी फफक पड़ी ” डॉक्टर साहब ! बाबूजी को बचा लीजिये ! “
डॉक्टर रस्तोगी उसे धीरज रखने की सलाह देते हुए तेज कदमों से नंदिनी के पीछे चल पड़े । सीढियां चढ़कर बरामदे में पहुंचते ही उन्हें कर्नल साहब फर्श पर ही पड़े हुए दिखे । उनका सिर अपनी गोद में रखे रामू अपलक उन्हें ही निहारे जा रहा था । कहना न होगा अश्रुओं की धार अविरल उसके नेत्रों के किनारे तोड़कर बाहर निकल रहे थे । उसकी नजरों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था । तभी नंदिनी दौड़कर बेडरूम से एक तकिया उठा लाई और रामू ने संभालकर वह तकिया कर्नल साहब के सिर के नीचे लगा दिया । डॉक्टर रस्तोगी साहब की अनुभवी नजरों ने कर्नल साहब को देखते ही स्थिति को भांप लिया था फिर भी रामू को एक गिलास में पानी लाने का हुक्म देकर खुद कर्नल साहब की नब्ज देखने लगे ।
नब्ज डूब चुकी थी । स्पंदन रहित कलाई थामते ही डॉक्टर रस्तोगी के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा ” नो मोर ! “
वज्र टूट पड़ा था नंदिनी के सिर पर ! बड़ी देर तक डॉक्टर रस्तोगी के शब्द ‘ नो मोर ! ‘ उसके जेहन में शोर मचाते रहे । एक बारगी उसे लगा उसका सिर फट जाएगा और उसके मष्तिष्क के चिथड़े उड़ जाएंगे । जेहन में गूंज रहे शब्दों का शोर थामने की नीयत से उसके हाथ स्वतः ही उसके दोनों हाथ दोनों कानों पर कूकर के ढक्कन की मानिंद फिट बैठ गए लेकिन उसे उस शोर से राहत नहीं मिली और कुछ ही समय बाद वह भी वहीं फर्श पर ढह गई । दोनों हाथों से दोनों कानों को बंद करने का असफल प्रयास करते हुए वह अपना सुध बुध खो बैठी थी ।
पता नहीं कितनी देर वह बेहोश रही थी उसे ठीक ठीक नहीं पता था लेकिन जब उसे होश आया वह अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और बेड की मच्छरदानी के सहारे लटकी हुई दवाई की बोतल से होती हुई सुई उसकी कलाई से ऊपर नसों में चुभी हुई थी । कमरे में ऊपर बने रोशनदान से सूर्य की किरणें छनकर अंदर प्रविष्ट कर रही थीं । शायद दिन चढ़ आया था । तेज किरणों की रोशनी से अचकचाकर उसने अपनी आंखें खोली । बेड के बगल में ही भारतीय सेना की वर्दी में दो लड़कियां जो शायद परिचारिकाएँ थीं बैठी हुई थीं और लगातार उसे ही देखे जा रही थीं ।
उसके शरीर में हरकत होते ही वो दोनों भी हरकत में आ गईं । उठने का प्रयास करती नंदिनी को एक नर्स ने आगे बढ़ कर कंधे से पकड़ लिया और दूसरी ने होठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने तथा लेटे रहने का अनुरोध किया । लेटे हुए ही नंदिनी ने अपने दिमाग पर जोर डालने का प्रयास किया और फिर उसे सब कुछ याद आता चला गया । अगले ही पल फुट फूटकर बिलखते हुए नंदिनी नसों में लगी सुई नोंचने का प्रयास करने लगी । सैनिक अस्पताल की दोनों परिचारिकाओं ने बलात उसे काबू किया और सावधानी से सुई उसकी जिस्म से अलग कर दिया । तभी सैनिक अस्पताल के ही महिला डॉक्टर ने वहां प्रवेश किया जिसने छटपटाती , बिलखती नंदिनी का परीक्षण किया ।
परिचारिकाओं की पकड़ ढीला महसूस करते ही नंदिनी बिस्तर से उतरकर कमरे से बाहर की तरफ भागी जहां उसने कर्नल साहब को आखरी बार देखा था । लेकिन कमरे से बाहर निकलते ही उसकी नजर कोठी के बाहर उमड़े हुए विशाल जनसमूह पर पड़ी । कोठी के लॉन में सेना के बड़े अधिकारियों की भीड़ थी जबकि बरामदे में ही कर्नल साहब का पार्थिव शरीर तिरंगा परिधान किये हुए ससम्मान रखा गया था । कुछ केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी की वजह से लॉन में गणमान्य व्यक्तियों के अलावा आम लोगों की मौजूदगी प्रतिबंधित की गई थी । सेना ने पूरी व्यवस्था संभाल ली थी और बंगले और बंगले के बाहर का परिसर लोगों की हुजूम के बावजूद सैनिक छावनी में तब्दील हुआ दिख रहा था । बंगले के बाहर दूर दूर तक जनसागर फैला हुआ था और अश्रुपूरित नेत्रों के बीच लोगों के मन का आक्रोश उनके चेहरों पर भी स्पष्ट दिख रहा था । लेफ्टिनेंट अमर सिंह के सीमा पर आतंकियों से मोर्चा लेते हुए शहीद होने की खबर पूरे इलाके में फैल गयी थी और उसी के साथ उनके पिता कर्नल सत्यप्रकाश के निधन की खबर ने पूरे इलाके को गम के सागर में डुबो दिया था । जो भी यह खबर सुनता कर्नल साहब की कोठी की तरफ दौड़ पड़ता ।
कोठी में मौजूद अधिकारियों व गणमान्य व्यक्तियों की मौजूदगी से बेपरवाह नंदिनी ‘ बाबूजी .’ का चीत्कार कर कर्नल साहब के पार्थिव शरीर की तरफ दौड़ पड़ी और अगले ही पल उनसे लिपट कर बिलख पड़ी । उसके करुण क्रंदन से वातावरण गुंजायमान हो ऊठा । सेना की महिला अधिकारियों ने नंदिनी को सहारा दे रखा था ।
तभी बाहर वातावरण में शोर बढ़ गया और कुछ स्वउत्सफूर्त नारों से आकाश गूंज उठा ।
‘ शहीद अमर सिंह …….अमर रहे !!!’
‘ ये तेरा बलिदान ……नहीं भूलेगा हिंदुस्तान !!! ‘
तभी शहर से बंगले की तरफ आनेवाली कच्ची सड़क पर सेना का भारी वाहन आता दिखाई पड़ा ।
मार्मिक और रोचक कहानी
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, निरंतर निखरती आपकी लेखनी और इंसानियत की ओर बढ़ती कथा वाली यह कड़ी भी मार्मिक और अद्भुत लगी. देश के जवान अपनी जान पर खेलकर देश की रक्षा करते हैं. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
राजकुमार भाई , ४७स्वा भाग बाहुत मार्मिक . देश के जवान कैसे देश की रक्षा करते हैं और आम लोग यह समझ नहीं पाते .
आदरणीय भाईसाहब ! देश के जवान अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश की रक्षा करते हैं और उनकी शहादत के बाद उनके परिवारों की कैसी दुर्दशा होती है और उनके मदद के नाम पर कैसी राजनीति होती है यह चर्चा करने के लिए ही कहानी में यह मोड़ आया है । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद !