गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बुझते हुए से आज चराग़ों की तरह है ।
जो शख्स मेरे चाँद सितारों की तरह है ।।

करता है वही कत्ल मिरे दिल का सरेआम ।
मिलता मुझे जो आदमी अपनों की तरह है ।।

रह रह वो कई बार मुझे देखते हैं अब ।
अंदाज मुहब्बत के इशारों की तरह है ।।

कुछ रोज से चेहरे की तबस्सुम पे फिदा वो ।
किसने कहा वो आज भी गैरों की तरह है ।।

यूँ ही न बिखर जाए कहीं टूट के मुझसे ।
नाजुक सा मुकम्मल वो गुलाबों की तरह है ।।

लाती हैं हवाएं भी नई जान चमन में ।
आना तेरा भी दर पे बहारों की तरह है ।।

भूला कहाँ हूँ आज तलक हुस्न का मंजर ।
यादों में कोई जुल्फ घटाओं की तरह है ।।

आये हैं मेरे घर पे तो किस्मत है ये मेरी ।
यह वक्त मेरे दिल की मुरादों की तरह है ।।

उलझा हुआ हूं मैं भी जमाने से अभी तक ।
बेचैनियों का दौर सवालों की तरह है ।।

रखता है सलामत वो मुझे हर बला से अब ।
कोई तो निगहबान दुआओं की तरह है ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]