कविता

राह

क्यों देखती हूँ बेवजह तेरी राह
जबकि ख़बर है न आओगे तुम

खो चुके हैं अहसास सारे
मर गए हैं रिश्ते हमारे
फिर भी दिल तलाशता है तुम्हें
पता है इन अहसासों को
कभी न समझ पाओगे तुम
क्यों देखती हूँ बेवजह तेरी राह
जबकि ख़बर है न आओगे तुम

बारिश नयनों की थम चुकी
बदली काजल बन बह चुकी
टूटे सपनों की किरचन चुभती है
इन सपनो की चुभन को
न महसूस कर पाओगे तुम
क्यों देखती हूँ बेवजह तेरी राह
जबकि ख़बर है न आओगे तुम

जिन राहों पर हाथ पकड़ चले थे
फूल प्रेम के जिन पर खिले थे
यादों के कांटे बिछ गए वहां अब
इन संजोई हुई यादों के काँटों से
क्या मुझे बचा पाओगे तुम !!!
क्यों देखती हूँ बेवजह तेरी राह
जबकि ख़बर है न आओगे तुम।

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]