नैना आज बहुत गुस्से में थी, हाथ में लिया आधा गिलास पानी भी उसके गले से नीचे नहीं उतर रहा था और हर बार की तरह वजह थे वह घटिया लोग जो अपने आप को नैना का दोस्त समझते थे ! लेकिन नैना ने उन्हें न कभी दोस्त माना और न कभी उन्हें अहसास होने दिया कि वह भ्रम में हैं !
नैना खुले विचारों की और सभी को अच्छा समझती ही थी और सच के रास्ते पर आगे बढना चाहती थी, लेकिन लोगों की दकियानूसी सोच से कभी कभी वह बहुत आहत हो जाती थी, उस दिन भी यही हुआ था !
जब उसके एक दोस्त ने उसे निचा दिखाने की कोशिश की थी ! मुंह तोड जबाब दिया उसने लेकिन फ़िर खुद से महसूस किया, सोचा कि कब तक वह लोगों की बातों को सुनेगी, कब तक उसे फर्क पडता रहेगा उनकी घटिया सोच का !
उसने बेफिकर होकर आगे बढने का सोचा और पांचों उंगलियों को मिलाकर एक हौसले की मुठ्ठी बांधी ! फलस्वरूप खून की छोटी छोटी बूंदे जमीन पर बिखर चुकी थीं ! दुख- दर्द नहीं था अब, सुकून की गहरी सांस ली और उसी मंज़िल की एक नयी राह पर नयी सोच के साथ निकल पडी !
—- जयति जैन “नूतन” रानीपुर झांसी उ.प्र.