लघुकथा -स्टेण्डर्ड
देखिये मिसेस रस्तोगी,मैंने आपही के कहने पर चमकी को इस वाली बीसी में मेम्बर बनाया था।आपही ने तो कहा था कि पिछली वाली बीसी में केवल बारह मेम्बर थे।इस बार कॉलोनी के कम से कम बीस सदस्य तो होना ही चाहिए,”जीजी ने उनसे थोड़ा तैश में आते हुए कहा।
“जीजी,ठीक है हमें सदस्य तो बढ़ाना थे लेकिन सदस्य कम से कम अपने स्टेण्डर्ड के तो हों।अब देखिये,चमकी हम लोगों के ही घरों में काम करती है और उसका घर भी झोपड़पट्टीनुमा है,भले ही वह हमारी कॉलोनी में रह रही हो।बीसी वाले दिन हम सदस्यों के घर ही तो चाय-नाश्ता करते हैं।क्या चमकी के घर हम चाय-नाश्ता कर सकते हैं!नहीं न!”मिसेस रस्तोगी ने कहा
इसी बीच उनके बहू-बेटे ने कक्ष में प्रवेश किया तो मिसेस रस्तोगी उनकी ओर मुखातिब होते हुए बोली- “बेटा कहाँ से आ रहे हो?”
“मम्मी बस यहीं से,हम चमकी आंटी के यहाँ से आ रहे हैं।उनकी बेटी के रिश्ते की बात के लिए कुछ लोग आये थे तो हमें भी बुला लिया था।आज उन्होंने दाल-बाफले और लड्डू बनाये थे।वास्तव में कितना स्वादिष्ट भोजन बनता है उनके यहाँ।हम तो खाते ही रह गए।”बहू ने जवाब दिया।
उधर जीजी मिसेस रस्तोगी के चेहरे पर आये भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।