घनाक्षरी छंद
मन में विश्वास लिए करते प्रयास रहें,
मुख न मलिन करें स्वाद चखें जीत का।
जीत का जुनून चढ़े और सूझे कुछ नहीं,
मानो बंद रच रहा गीतकार गीत का।
गीत का सृजन करे मन चाही धुन बजे,
जब कोई नित पाए संग मनमीत का।
संग मनमीत का जो सुखद हमेशा रहे,
जान कोई नहीं पाया पता इस रीत का।।
पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’