सृजन
नहीं आसान
धरती में दबे रह कर
खोल से आना बाहर
अँकुर का,
नींव को पाट कर
निर्माण करना
इक नई छत का
नहीं आसान…..
दिन रात का मंथन
बताता मर्म जीवन का
गर्भ में रख शिशु को
करना पोषण
सहना प्रसव पीड़ा,
मिलना नया जीवन
नहीं आसान….
प्रेम का अंकुर
अश्रु सें सिंचता
होता तब कहीं
पल्लवित
तीक्ष्ण किरणों के कारण
पिघलता हिम
नदियों का प्रवाह
नहीं आसान….
है पीड़ा बहुत
सृजन के मूल में
इसको पार कर
निर्माण करना
समझना मर्म
जीवन का
नहीं आसान
— शिप्रा खरे