“कुंडलिया”
रानी बैठी रूपिणी, लेकर पींछी साज
बादल को रँगने चली, मानों घर का राज
मानों घर का राज, नाज रंगों पर करती
नित नूतन सुविचार, आकृति उलझी रहती
कह गौतम कविराय, यौवना प्यासी पानी
दिल के जीते जीत, जीत दिल हारी रानी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी