रोमन लिबास में कराहने को मजबूर हमारी हिन्दी
कभी सहिष्णुता को अपना मुद्दा बनाने वाले हमारे तथाकथित हिन्दी सिने कलाकारों ने आज भारतीय हिन्दी सेवियों को उनकी सहनशीलता की सीमाएं तोड़ने पर बाध्य कर दिया है। पिछले हफ्ते से हिन्दीसेवी सिनेस्तान डिजिटल प्राइवेट लिमिटेड सिनेस्तान डॉट कॉम द्वारा शुरू की गई सिनेस्तान इंडियाज स्टोरीटेलर्स स्क्रिप्ट प्रतियोगिता में हिन्दी को रोमन लिपि में लिखे जाने की शर्त पर सफाई मांग रहे हैं। परन्तु निर्णायकमण्डल के किसी सदस्य के सिरपर जूं तक नहीं रेंग रहा है।
अलबत्ता जूं रेंगेगा भी कैसे, क्योंकि हिन्दी के कारण ही अपने ऐश्वर्य पर अभिमान करने वाले ये रोमनप्रेमी इतने स्वार्थपरक हैं कि वे जानते हैं कि हिन्दी जब संविधान में रहकर अपने ही देश में किसी दण्ड देने की अधिकारिणी नहीं बनाई गई है, तो सफाई देना या न देना कोई मायने नहीं रखता।
प्रतियोगिता में पटकथा भेजने के लिए 16 नियम बनाए गए थे, जिसके अंतिम नियम में पटकथा रोमन लिपि में लिखी होने की बाध्यता थी। इसका सीधा सीधा अर्थ था कि रोमन में लिखी हुई हिंदी पटकथा को ही अनुमति मिलेगी, हिन्दी अपनी देवनागरी लिपि में स्वीकार नहीं की जाएगी। हिन्दी के लेखकों की खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं हैं, स्टोरीटेलर्स स्क्रिप्ट प्रतियोगिता वाले आयोजक भी समझते हैं कि नवोदित हिन्दी लेखकों को ठगने का इससे अच्छा मौका और कोई हो ही नहीं सकता। लेखक भी कुछ मजबूरी में और कुछ भाषाई असंवेदनशीलता के चलते अपनी ही हिन्दी को रोमन जामा पहनाने में तनिक भी लज्जा का अनुभव नहीं करते। तुक्का जो लग गया तो सर्वश्रेष्ठ स्क्रिप्ट को 25 लाख रुपये का पुरस्कार मिल जाएगा, कुछ नहीं तो कुछ सर्वश्रेष्ठ स्क्रिप्ट सिनेस्तान स्क्रिप्ट बैंक का हिस्सा ही बन जाएंगी, शायद आगे खाता भुनाने का अवसर मिल जाए। इस सबमें कहां हिन्दी और कहां देवनागरी। हिन्दी को तो सहन करने की आदत जो पड़ गई है, चाहे वो हिन्दी सिनेमा जगत ही क्यों न हो, जो पूरी तरह से हिन्दी पर ही पल रहा है, लेकिन उसने ही सम्भवतः हिन्दी का सबसे अधिक अपमान किया है। रहा सहा अपमान हिन्दी को रोमन लिपि में लिखने की शर्त ने पूरा कर दिया।
कई साल पहले भी हिन्दी इन सिनेमाइयों का स्क्रिपटीय शिकार हुई थी, जब मुंबई मंत्रा सनडांस और मुंबई मंत्रा सिनेराइज स्क्रीन राइटिंग के साथ इस पहल की शुरुआत की थी। कितनी सहजता से कह लेते हैं ये आयोजक कि वे भारतीय स्टोरी टेलर्स प्रतिभा को आगे लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। ये भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये सभी वक्तव्य उनके द्वारा अंग्रेजी में दिए जाते हैं।
सिनेस्तान इंडियाज स्टोरीटेलर्स स्क्रिप्ट प्रतियोगिता में 15 अक्टूबर, 2017 से 15 जनवरी 2018 तक जाने कितनी रोमन में लिखी हिन्दी पटकथाएं प्रविष्टियों के रुप में हिन्दी का परिहास करते निर्णायकों की टेबिलों पर काजू बादामों के ढेर के साथ चबाई जा रही होंगी। तभी शायद किसी सफाई के लिए न तो निर्णायकों के पास समय है, न ही उत्तरदायित्व की भावना। न उस हिन्दी को लेकर अपरोध बोध जिसका सरेआम वे मजाक बना रहे हैं।
दुख इस बात का है कि क्या वाकई हम सबने मिलकर अपनी ही हिन्दी को इतना लाचार बना दिया है, अब आने वाले दिनों में हमें उसे रोमन लिबासों में सुबकते देखना पड़ेगा??
हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री छलावा है