कविता

विकास नहीं, एक और पाकिस्तान बनाना है! 

जो देश तोड़ कर ले गये थे और पाकिस्तान बना डाले।
वो चमड़ी के बेशक गौरे हों, लेकिन हैं दिल के काले।।
जिन्हें बहन, बेटियों, माता में कोई फर्क नजर नहीं आता।
बस हवस उनकी बुझ जाये, ताक धरा है हर नाता।।
जिनको अपनी बहन, बेटियों में भी बेगम दिखती हो।
जहां औरतों की इज्जत भरे बाजारों बिकती हो।।
उनसे क्यों उम्मीद हो करते, देशभक्ति और यारी की।
उनकी तो फितरत ही है राष्ट्रद्रोह, गद्दारी की।।
जो ये नमक हराम ना होते, पाकिस्तान क्यों बनता रे।
भारत से टूटे हर टुकड़े पर, क्यों इस्लाम पनपता रे।।
इनकी नियत में भरा हुआ है, गजवा हिन्द बनाने की।
इनकी तो चालें टेढ़ी हैं, भारत को मिटाने की।।
10-12 बच्चे करना और कोई उद्देशीय नहीं।
भारत भी शीघ्र इस्लामिक हो, इनके मन में सोच यही।।
भारत के संसाधनों को शीघ्र ही नष्ट कर देना है।
दुनिया आगे चले ना चले, इनको कुछ लेना, ना देना है।।
बस इस्लाम का परचम सारे संसार पे छा जाये।
इस्लाम का सपना पूरा होगा, जब कयामत आ जाये।।
डी. एस. पाल (लेखक)

धर्मवीर सिंह पाल

फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई के नियमित सदस्य, हिन्दी उपन्यास "आतंक के विरुद्ध युद्ध" के लेखक, Touching Star Films दिल्ली में लेखक और गीतकार के रूप में कार्यरत,