प.. से प्रेम
प्रेम…
उम्र से बढ़कर
समय से परे
भाषा में कैद नहीं
न ही परिभाषा में समाये
इतना संवेदनशील
कि छुअन से थर्रा जाये
इतना मजबूत
कि पत्थर से टकरा जाए
पारदर्शी ऐसा
जैसे कि काँच
पर अदृश्य ऐसा
ढूंढने पर नज़र न आए
सरल इतना
हर सवाल सुलझ जाये
और जटिल इतना
कि जीवन सारा उलझ जाये
शीतल इतना
कि छाँव बन जाये
और इतना उष्ण
कि मन झुलसा जाये
इतना विशाल
और उन्मुक्त
कि आकाश नज़र आये
उपजाऊ और
सहनशील इतना
कि धरती बन बिछ जाये
*
कि बड़ी मुश्किल है इसकी थाह पाना ….. !!
– – शिप्रा खरे