कविता

प्रेम जिंदगी का कवच !!!

मुसाफि़र सी इस जिंदगी में
जो किसी के साथ चलना जानता है
जो साथ चलते-चलते
किसी का हो जाना चाहता है
जो किसी का होकर
उसे अपना बना लेता है
ऐसी पगड‍ंडियां सिर्फ औ सिर्फ
प्रेम ही दौड़कर पार कर सकता है
समेट लेता है अहसासों को
भावनाओं की अंजुरी में
प्रेम के ढाई आखर पढ़कर ही नहीं
जीकर जिंदगी को
कितने पायदान चढ़ता है
बिन डगमगाये !!

प्रेम जिंदगी का वो कवच
जिसके साये में
सारी नफ़रते पिघलती रहीं
शीशे की तरह
इसकी मधुरता के बँधन
मुक्त होकर भी कदमों में जँजीर बन जाते
जिन्‍हें तोड़ने का बल सिर्फ
प्रेम ही जानता है !

ये ऐसा तत्‍व है
जो हर मन में बसता है
इसकी शक्ति कल्‍पना से परे
एक आवाज जो
मौन रहकर भी मुखरित होती है
सिर्फ संभव है प्रेम में
अहसासों के छाले जब-जब
पॉँवों में पड़ते हैं
एक आह ! निकलती है दूसरे के लबों से
ऐसा करिश्‍मा सिर्फ
प्रेम ही कर सकता है !

सीमा सिंघल 'सदा'

जन्म स्थान :* रीवा (मध्यप्रदेश) *शिक्षा :* एम.ए. (राजनीति शास्त्र) *लेखन : *आकाशवाणी रीवा से प्रसारण तो कभी पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित होते हुए मेरी कवितायेँ आप तक पहुँचती रहीं..सन 2009 से ब्लॉग जगत में ‘सदा’ के नाम से सक्रिय । *काव्य संग्रह : अर्पिता साझा काव्य संकलन, अनुगूंज, शब्दों के अरण्य में, हमारा शहर, बालार्क . *मेरी कलम : सन्नाटा बोलता है जब शब्द जन्म लेते हैं कुछ शब्द उतरते हैं उंगलियों का सहारा लेकर कागज़ की कश्ती में नन्हें कदमों से 'सदा' के लिए ... ब्लॉग : http://sadalikhna.blogspot.in/ ई-मेल : [email protected]