शिवरात्रि : शिव और शक्ति के परिणय सूत्र में बंधने की रात्रि
कहा जाता है कि कुंवारी कन्याएं यदि महाशिवरात्रि का व्रत रखती तो उन्हें भगवान भोलेनाथ के समान विवाह के बाद वर मिलते हैं। महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के एक साथ परिणय सूत्र में बंधने का का महोत्सव है। शिवरात्रि का अर्थ होता है वह रात्री जिसका शिवत्व के साथ घनिष्ठ संबंध होता है। अर्थात भगवान शिवजी के सबसे अधिक प्रिय रात्री को शिवरात्रि कहा जाता है। शिवरात्री में उपवास, शिवपूजन, एवं रात्री जागरण भगवान जी को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं। कहा जाता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी की रात आदिदेव भगवान भोलेनाथ करोड़ों सूर्यों के आभा यानी ज्योति लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिव रात्रि महाशिवरात्रि कहलाती है। महाशिवरात्रि भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती जी के एक साथ विवाह बंधन में बंधने का दिन है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस विशेष रात्रि को शिव जी और पर्वतराज हिमालय की सुपुत्री पार्वती जी का विवाह हुआ था। और तभी से महाशिवरात्रि की शुरुआत हुई।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, शिव जी जब पार्वती से विवाह करने पर्वतराज हिमालय के यहाँ पहुँचे तो उनके विवाह में बारात में प्रेत, पिशाच, उनके गले में विषधर, जीवजंतु, देवता एवं असुर सभी शामिल हुए। चूँकि यह एक शाही शादी थी इसलिए विवाह समारोह से पहले एक विशेष समारोह का आयोजन किये गए थे। जिसमें वर एवं वधू दोनों वंशावली पढ़ी जा रही थी। एक राजा के लिए उनके वंश की वंशावली बहुत ही ख़ास होती थी जो उनके जीवन की गौरव गाथा होती थी। पार्वती के वंशावली का गुणगान काफी धूमधाम से हुई। अब बारी थी शिव जी के वंशावली के गुणगान करने की तब पार्वती के पिता ने शिव से अपने वंशावली के बारे बोलने के लिए कहा। शिव जी शून्य की ओर एकटक देख रहे थे। सारे बाराती अपने में मग्न थे। विवाह का शुभ समय तेजी से बीत रही थी। शादी में उपस्थित वधू पक्ष के समाज लोगों में शिव के वंश को लेकर फुसफुसाहट शुरू हो चुकी थी तब नारद मुनि जी ने स्थिति को सम्हालते हुए अपनी वीणा के तार से टँग की ध्वनि निकलते हुए कहा – ‘ये स्वयंभू हैं इन्होंने अपनी रचना स्वयं की हैं इसलिए इनका न कोई माता-पिता है, न कोई वंश है और न कोई गोत्र। ये सब से परे हैं इनका ध्वनि ही एकमात्र वंश है जो प्रकृति से एक ध्वनि के रूप में प्रकट हुए हैं। और प्रकृति में कोई भी चीज अकारण नहीं होती। प्रकृति में सबका अपना महत्व होता है ‘|
शिव सबके प्रिय हैं और सब शिव के प्रिय हैं। शिवशंकर के नाम में ही सारे संसार के लिए मंगल एवं हित छिपा हुआ है। एक योगी और तपस्वी होते हुए भी शादी के बाद भोलेनाथ गृहस्थ जीवनयापन करते हैं| उनका जीवन एक महत्वपूर्ण संदेश हमें देते हैं। उनकी पूजा सरल तरीके से भी कर सकते हैं और विधि पूर्वक भी कर सकते हैं। शिव जी केवल बेलपत्र और जल से भी प्रसन्न होते हैं। शिव जी महान एवं परम ज्ञानी हैं वे सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
— विनीता चैल