मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

माटी मह मह महक रही है, माटी की दीवाल रे।

चूल्हा माटी बर्तन माटी, माटी में शैवाल रे।

ऐ माटी तू कहाँ गई रे, आती नहिं दीदार में-

माटी माटी ढूढ़ें माटी, माटी में कंकाल रे॥-1

कौन उगा है बिन माटी के, अंकुर है बेहाल रे।

खोद रहे सब अपनी माटी, माटी सम्यक माल रे।

माटी बिना पहाड़ पहुँच क्या, सूखे माटी गाँव में-

विचलित हरियाली माटी की, मैना झूले डाल रे॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ