हे अलि !
हे अलि ! पिया अबहुँ नहि आये ।
यह अनंग का मीत निर्दयी ,उर तंत्री झनकाये ।
मौसम ने ली है अंगड़ाई।
चहुँ दिशि में हरियाली छाई।
दशों दिशाएँ प्रेमसिक्त हैं ,
मेरी रैन विरह की आई ।
यह समीर सौरभमय शीतल ,तन मन को झुलसाये।
हे अलि!………………….
रातें रातें जाग जाग कटती हैं।
काली नागन सी डसती हैं ।
सबके संग सबके प्रियतम हैं,
मेरे संग यादें रहती हैं ।
मेरा यौवन, मेरी रातें, कौन भला महकाये ?
हे अलि !……………
चहुँ दिशि प्रकृति प्रिया मुस्काई ।
मेरे हृदय उदासी छाई ।
यह पलाश, सेमल ,की लाली –
मेरें अधरों तक न आई ।
मैं श्रंगार रहित नवयौवना, मुझको कौन सजाये ?
हे अलि !……………………
पीत वस्त्र सरसो लहराये ।
पाकड़ लाल हुई शरमाये ।
महकी बौराई ,अमराई ,
बाग बाग में शुक ,पिक आये ।
यह पपिहे की ,पिया पिया धुन ,मन में अगन लगाये ।
हे अलि ! ………………….
–डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी