गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दौर   हाज़िर   है   हमारा  आज   के   रूदाद  पर,
रख दिया  है ख़ुद सफ़र को नेह की बुनियाद पर।

दीप  बन  रौशन  करें  जग ज्ञान की किरणों तले,
कोशिशें सच  बोल  दे  ख़ुद मौसमी फ़रियाद पर।

लड़खड़ाने   अब   लगे   हैं   पाँव   मेरे    राह   में,
चल  दिया  हूँ  आज रख  के  ज़िन्दगी इम्दाद पर।

महफ़िलों   में  हम   अकेले   याद   में   खोये  रहे,
बात  आगे  बढ़   गयी   थी   आपके   संवाद  पर।

ढूढ़ता  है  ख़ुद  ‘अतुल’  अब  हैसियत  बाजार  में,
कामयाबी  है  मिली   सब  आपके  ही  दाद  पर।।

नवाब देहलवी

नवाब देहलवी

पेशा- साफ्टवेयर इंजी० रुचि : साहित्य लेखन व पठन पाठन लेखन-विधा : गीत, ग़ज़ल, नज़्म, मुक्तक, कहानी, कविता, उपन्यास।