कविता

बस तुम

जाना चाहते हो तुम
तो शौक से चले जाओ
मगर सुनो…..
लगा देना किवाड़
यादों के दरवाजे को
कहीं विस्मृतियों के वन से
पवन संग बहकर
चली न आये याद कोई
जो कर दे परेशां …..
हटा देना धवल बादलों को
जिनसे छनकर सुनहरी किरणें
सुखा देंगी प्रेम में भीगी हुई
इन हथेलियों को जिनसे
खिलाये थे कौर कभी…
मिटा देना इन फूलों को
जिनसे आती हुई प्रेम सुगंध
प्रेरित करती है दिन रैन
मुझे बस लिखने को…
मैं कुछ और तो नहीं जानती
पर हां इतना तो जानती हूं
मेरे लिए गीत, ग़ज़ल, नज़्म
मेरी कलम से निकलता हुआ
हर्फ़-हर्फ़ बस तुम ही हो
बस तुम ही हो….

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]