लघुकथा – ईमानदारी
“पापा आज आपकी भी छुट्टी है और मेरी भी।आज तो खाने पे बाहर चलना हीं पड़ेगा।”
गोलु जिद पर अड़ गया।
रमेशबाबु समझाने लगे-“अच्छे बच्चे जिद नहीं करते।बाहर का खाना खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ता हैं और तुम्हें तो बड़े होकर सैनिक बनना है न! तो सेहत का•••।” आगे कुछ बोल पाते इससे पहले ही गोलु बड़ा हीं मासूमियत से बोल पड़ा-“पापा एक बात पूछूं ?
“हाँ बेटा जरुर पूछो।” पापा ने सिर हिलाते हुए कहा।
” पापा आप ईमानदारी से मेहनत नही करते हो क्या?” सबालात् भरी निगाहों से पूछा।
रमेशबाबु-“हाँ करता हूँ पर तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?”
गोलु-“पापा कल मेरे मास्टर जी बता रहे थे कि अगर ईमानदारी से मेहनत करोगे तो एक दिन बड़े आदमी बनोगे तुम्हारे पास हर खुशी होगी।
उधर बिट्टू के पापा को देख लो हर संडे को होटल, माॅल कहाँ-कहाँ नही ले जाते हैं।शहर के बड़े स्कूल में पढ़ाते भी हैं जबकि आप भी क्लर्क हैं और उसके पापा भी•••••••।”
रमेशबाबु नि:शब्द हो गये। मानो उनके कंठ में पानी अँटक गया हो और उस सात साल के बच्चे को समझाने की तरकीब ढूंढने लगे कि-”बेटा ईमानदारी से मेहनत करता हूँ इसीलिए तुम्हें खुश नही रख पा रहा हूँ, शहर के बड़े स्कूल में नहीं पढ़ा पा रहा हूँ।”
उसके पापा तो रिश्•••••।”
— नवीन कुमार साह