“नैना की ससुराल”
नैना नाम है इस गिलहरी का जो पैदा तो बड़े से जंगल के किनारे की झाड़ियों में हुई और फुदकना भी वहीं सीखा। अपने माँ-बाप और भाई- बहन के साथ वह जंगली फलों का भरपूर स्वाद लेती थी और कतरन गिराकर कर खुश हो जाया करती थी। पर एक दिन सड़क पर गन्ने से लदी हुई ट्रक में उस समय सवार हो गई जब ट्रक का ड्राइवर नित्य कर्म के लिए निर्जन स्थान देखकर अपनी ट्रक को किनारे लगाकर खड़ी कर दिया था। पुनः ड्राइवर ने ट्रक को कब चला दिया, उसे पता ही न चला और मतवाली नैना गन्ने की मिठास में मसगूल होकर रस चूसती रह गई और अनजाने में उसका अपहरण हो गया।
कुछ समय बाद पेट भर जाने पर उसे घर की याद आई तो वह नीचे जमीन पर उतरी जहाँ उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक चुकी थी। उसका मैका उससे ओझल हो चुका था, उसका कोई अपना नहीं था। जिन्हें इधर उधर खोजती रही, आँसू बहाती रही। थक हार कर वहाँ खड़े आम और नीम के पेड़ की जड़ से सटकर सुस्ताने लगी कि गली के कुत्ते की नजर उस पर पड़ गई, जिसने आदतन नैना पर हिंसक झपट्टा लगा दिया। नैना छलांग लगाकर आम के पेड़ पर चढ़ गई और कुत्ते गुर्राते रह गए।
धीरे -धीरे रात- दिन अपनी गति पर बीतने लगे और नैना उस घर में आने जाने लगी जो पेड़ के मालिक का अपना आशियाना है। उस घर में एक दश वर्ष का प्यारा सा बच्चा भी है जिसका नाम अद्दु है जो नैना को पकड़कर उसके साथ खेलना चाहता है, शायद अनजाने में फुदकती गिलहरी से प्यार कर बैठा है। डर रही थी नैना, अनजाने हाथ, न जाने उसकी क्या गति बना दें और फुर्र से पेड़ पर चढ़ जाया करती है। अद्दु की चाहत रंग लाई और नैना के मखमली बालों में अपनत्व की उँगली मचलने लगी। उसे भरे पूरे ससुराल के साथ एक सुंदर सा नाम भी मिल गया “नैना” । काश अद्दु की तरह हम सब भी बिछड़ी हुई नैना, मैना को गले लगा पाते।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी