गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – किसने कहा है दर्द का मरहम नहीं है वो

यूँ जिंदगी के वास्ते कुछ कम नहीं है वो ।
किसने कहा है दर्द का मरहम नहीं है वो।।

सूरज जला दे शान से ऐसा भी नहीं है ।
फूलों पे बिखरती हुई शबनम नहीं है वो ।।

बेचेगा पकौड़ा जो पढ़ लिख के चमन में ।
हिन्दोस्तां के मान का परचम नहीं है वो ।।

बेखौफ ही लड़ता है गरीबी के सितम से ।
शायद किसी अखबार में कालम नहीं है वो ।।

मेहनत की कमाई में लगा खून पसीना ।
अब लूटिए मत आपकी इनकम नहीं है वो ।।

तकदीर बना लेगा वो अपने ही करम से ।
इंसान की औलाद है बेदम नहीं है वो ।।

मजबूरियों के नाम पे खामोश बहुत है ।
मेरे किसी भी काम से बरहम नहीं है वो ।।

कोटे की सियासत से जरा बाज अभी आ ।
भारत की बुलन्दी का तो आगम नहीं है वो ।।

दो चार के बदले में हजारों को मिटा दे ।
खुलकर क़ज़ा दे सामने सक्षम नहीं है वो ।।

नापाक है दुश्मन तो सजा दीजिये भरपूर ।
कायर है अभी जंग का रुस्तम नहीं है वो।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]