ग़ज़ल – चश्मा उतार करके वफाओं को देखिए
पत्थर से चोट खाए निशानों को देखिए ।
बहती हुई ख़िलाफ़ हवाओं को देखिए ।।
आबाद हैं वो आज हवाला के माल पर ।
कश्मीर के गुलाम निज़ामों को देखिए ।।
टूटेगा ख्वाब आपका “गज़वा ए हिन्द” का ।
वक्ते क़ज़ा पे आप गुनाहों को देखिये ।।
गर देखने का शौक है अपने वतन को आज ।
सरहद पे ज़हर बोते इमामों को देखिए ।।
कुछ फायदे के वास्ते दहशत पनप रही ।
सत्ता में बैठे आप दलालों को देखिए ।।
मन्दिर न बन सके न वो मस्जिद ही बन सके ।
दूकान बन्द मत हो खजानों को देखिए ।।
मजहब नहीं बुरा है सियासत बुरी यहां ।
अमनो सुकूँ के खास इरादों को देखिए ।।
दर दर की खाक छान रहे नौजवान सब ।
हैं पेट के सवाल ये, सवालों को देखिए ।।
भरपूर टैक्स आप लगाते रहें मगर ।
थाली में क्या बचा है निवालों को देखिए ।।
मां भारती का ताज है मुस्लिम सपूत भी ।
चश्मा उतार कर के वफाओं को देखिए ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित