ग़ज़ल – बात दिल में ठहर जाती है
छू के साहिल को लहर जाती है ।
रेत नम अश्क़ से कर जाती है ।।
सोचता हूँ कि बयाँ कर दूं कुछ ।
बात दिल में ही ठहर जाती है ।।
याद आने लगे हो जब से तुम ।
बेखुदी हद से गुजर जाती है ।।
कुछ तो खुशबू फिजां में लाएगी ।
जो सबा आपके घर जाती है ।।
कितनी ज़ालिम है तेरी पाबन्दी ।
यह जुबाँ रोज क़तर जाती है ।।
हुस्न को देख लिया है जब से ।
तिश्नगी और सवर जाती है।।
ढूढिये आप जरा शिद्दत से ।
दिल तलक कोई डगर जाती है ।।
कर गया जख्म की बातें कोई ।
रूह सुनकर ही सिहर जाती है ।।
जब भी फिरती हैं निगाहें उसकी ।
कोई तकदीर सुधर जाती है ।।
आशिकों तक वहाँ जाने कैसे ।
तेरे आने की ख़बर जाती है ।।
देख कर आपका लहजा साहिब ।
चोट मेरी भी उभर जाती है ।।
जब निकलता हूँ तेरे कूचे से ।
कोई सूरत तो निखर जाती है ।।
कोशिशें कर चुका हूँ लाखों पर ।
ये नज़र फिर भी उधर जाती है ।।
बे अदब हो गयी है याद तेरीे ।
बे सबब दिल में उतर जाती है ।।
जेब का हाल समझ कर अक्सर ।
आशिकी हम से मुकर जाती है ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी