कविता – नन्ही दुल्हन
छोटी सी उम्र में दुल्हन बनी
हल्दी भी लगी मेंहन्दी रची
न कोई रिश्ते नाते समझी
न कोई रीति रिवाज जानी
रोज घर के आगे गीत संगीत ढोल बजते
ये न समझती
पढ़ना लिखना छोड़ कर ये बाबुल का घर छोड़ चली
सब रोने लग तो ये भी रोती
कोई हंसता तो ये हँस जाती
निश्छल नासमझ ये भोली
प्यारी प्यारी दुल्हन जाती
मन में इसके प्रश्न अनेक
पर ये कुछ न पूछ पाती
अजनबी घर मे पहुंचती
घूंघट में सबसे शर्माती
गाँव की महिलाएं आती
मुँह दिखाई देकर जाती
पढ़ा लिखा समाज भी ये विवाह क्यों नहीं रोकता
आखिर कब तक चलेगा
बाल विवाह कैसे रुकेगा
सब मिलकर साथ दें
तो कुप्रथा पर अंकुश लगेगा
वरना इन बच्चों का तो भविष्य ही मिट जाएगा
कानून बनाया सरकार ने
आओ सभी पालन करे
लड़की की अठारह और लड़के की उम्र इक्कीस
बस इतना सा याद रखें
कम उम्र में शादी न करें
— कवि राजेश पुरोहित