कविता

चलो अब साथ चले

चलो अब साथ चले
गम को कही दूर करे
बिन मतलब की बात सें
दिल को न दुखी करें

लब पर मुस्कान लेकर
ऑखो में कुछ ख्वाब सजाकर
मंद मंद बहती हवाओ में
करें बात मदमस्त होकर

क्यो करना दुनियॉ की फिकर
हम हैं जमानो से अलग
चॉद तारो की महफिल जहॉ
हम दोनो ठहरे वहॉ

एक पल भी अब गवारा ना
तेरे बिना जग सुना सा
हंसी ठिठोली करते थे साथ
अब वही गुम है कही जा

मौसम चाहे जो भी हो
आशिक तो सिर्फ तुम्ही हो
तेरी बाहो का ऐसा घेरा
लगे जैसे कोई छत्रछाया हो।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४