ग़ज़ल
राज अभी कई गहरे बाकी है
टूटने को ख्वाब सुनहरे बाकी है
पकड़े गए है लुटेरे कुछ ही
अभी तो कितने चेहरे बाकी है
इक नल ही पकड़ा है पाप का
अभी सागर नदिया नहरे बाकी है
इक जरा सी हलचल में लड़खड़ा गए
अभी तो सुनामी लहरे बाकी है
युँ ही लिखा है मोजू ने बैठे ठाले
अभी तो ग़ज़ले औ बहरे बाकी है
— मनोज “मोजू”