बादल का गुस्सा
बड़ी ज़ोर से आज रात
बादल को गुस्सा आया है
धुँअे की पिचकारी से किसने
उसको आज जगाया है
नसों में उठ रहा उबाल है
गुस्से से हो रहा लाल है
बिजली की तलवार खींचकर
खूब ज़ोर गुर्राया है
धरती कैसे हाँफ रही है
थरथर थरथर काँप रही है
उसके बेपरवाह बच्चों ने ही
आफत को यहाँ बुलाया है
सबक सिखायेगा अब बादल
बरसायेगा ना कोई जल
‘रो रो कर पछतायेंगे सब
कि पानी को तरसाया है
– शिप्रा खरे