“तेरी याद”
“तेरी याद”
“तेरी याद में जाने कैसी आज उदासी छायी है,
दिल बैठा खामोश मगर अब,
बात जुबॉ पर आयी है।
दिन जैसे-तैसे गुजरा पर ,
कैसे रात बीतेगी अब…
बैचेनी का सबब देख-लो ,
जीते जी घुट जाते है।
सभी जनों के बीच से कैसे,
हर बार; हम ही लूट जाते है।
कैसे तेरी बातों के झांसे में ;
हर बार;हम ही, फंस जाते है।
रहते सभी मित्र संग हरदम ;
कटे- कटे से पाते है ।
जाने क्यों तेरी याद हमेशा,
बे – वक़्त कंही आ जाती है।
“धाकड़” हरीश
स्वरूपगंज,छोटीसादड़ी (राज•) दिनांक : 26/02/2018