“गीतिका”
कहाँ किसी से कहा कहीं है
नहीं किसी की जुबा सही है
अधर अधर को चखा रहें है
न दूध प्याली जहाँ दही है॥
मधुर अगन पर पका रहे हैं
जमी कढ़ीं को हिला रही है॥
उबल रही जो लपट तपन ले
अगन लगाना कहाँ सही है।।
विरह जिगर पर सहन करे जो
सहज समझ लो चिलम वही है॥
धुँआ उड़ा कर हटा रहे क्यों
गरज गुजर की हवा बही है॥
गुनाह गौतम इतर बला है
नवरत्नों की महा मही है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी