*प्रेम व ब्रह्मांड
*कविता*
*प्रेम व ब्रह्मांड*
(प्रेम को समझना ब्रह्मांड को समझने की तरह है, कविता में ब्रहमांड की उत्पत्ति को वैज्ञानिक तरीके से पेश किया गया है ।)
नहीें है कोई आयाम
न दिशा ब्रह्मांड का
प्रेम भी है दिशाविहीन आयामहीन
दोनों में है इतनी समानता
जैसे ब्रहमांड के रहस्य
जानता हो प्रेमी
रात रात जाग गिन जाता है अनगिनत तारें कितना गहरा है संबंध प्रेमी व ब्रह्मांड में
तभी तो प्रेमी करता है प्रेमिका से
चांद सितारें तोड लाने की बातें।
बिलकुल उस ब्रह्मांड वैज्ञानिक की तरह
वह जान लेना चाहता है
हर ग्रह के चांद, सितारों को
अपनी प्रेयसी के लिए ।
गढता है एक नयी कविता और खंगालता है नभ मंडल के पार के असंख्य ग्रह नक्षत्र सितारों को
प्रेम के अनंत रस से
समेट लेना चाहता है
ब्रह्मांड -उत्पत्ति की अनंत ऊर्जा को
क्योंकि वह जानता है
गाडपार्टिकल ने ऊर्जा को बदला है पदार्थ में
और वह जानता है
यह तथ्य-
ऊर्जा का संचार जिसमें सौ प्रतिशत है
वही प्रेमी है।
ब्रहमांड का जन्म महाविस्फोट के 1 सेकंड के अरबवें समय में,
प्रेम भी इतने समय में होता है,
प्रेमीयुगल नव ब्रह्मांड सरीखा।
प्रेम रचता हर बार नया ब्रहमांड,
प्रेम सत्य है
ब्रह्मांड भी सच है
एंटी मैटर
उस नफरत की तरह है
ब्रह्मांड को अस्तित्व में आने नहीे देता था।
बस एक सैकेंड में
एंटी मैटर के बराबर से थोडा अधिक,
पाजिटिव मैटर रूपी प्रेम ने रच दिया ब्रहमांड
उस नफरत रूपी एंटी मैटर के खिलाफ
अस्तित्व में आया कई ब्रह्मांड
जिनमें एक हमारा सूरज, धरती।
लैला-मजनू, सोनी-महिवाल उनके किस्से
अभिज्ञानशकुतंलम्, जूलियस सीजर
इस ब्रह्मांड की देन है
देखो ब्रहमांड की और
हर तारें में संचारित प्रेम
ग्रह करते हैं प्रणय परिक्रमा।
दूर आकाश गंगा की रंगीन रोशनी
प्रेम उत्सव मनाती सी
सीखाती इंसानों को प्रेम करना।
(सर्वाधिकार सुरक्षित अभिषेक कांत पाण्डेय। दिनांक 14 फरवरी, 2018)