याद गोधरा की ,जलती हुई वसुंधरा की
रेल में बैठे थे यात्री कई हजार
सफर में मशगूल , खुशियाँ अपरंपार
पर अचानक घटित हुआ कुछ ऐसा
इक डब्बे पर अचानक हुआ वार
याद है ना वो प्लेटफार्म , वो डब्बे
वो जलने के निशान ,वो काले धब्बे
बंद थे बाहर से दरवाजे
अंदर से आ रही थी आवाजे
कातर स्वर में चीख रहे थे सारे
बाहर थे अल्ला हूँ अकबर के नारे
भूल गए या याद दिलवाऊं इक बार
वो अफरातफरी वो चीख पुकार
शहीदो मे मासूम बच्चे भी थे शामिल
उन्हें मार क्या किया था हासिल
ये था उनकी फितरत का प्रमाण
जिसे झेलता आया था हिंदुस्तान
उन्हें खून खराबे में आता था मजा
और कानून भी नही देता था सजा
अल्पसंख्यक मासूम का ले हथियार
बढ़ता जा रहा था उनका अत्याचार
मनोज”मोजू”