गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मैं जागता रहा मगर उसको खबर न थी
पलकों पे उसकी ख्वाब थे मुझ पे नजर न थी
आकर किसी ने मुझको अचानक बचा लिया
वरना ये जान जाने में कोई कसर न थी
पाने की उसको चाह थी पर जिद न कर सका
बच्चे सा मन जरूर था उस पर उमर न थी
कोहरे ने आफताब की पहचान छीन ली
पहले तो इस तरह कभी शामो-सहर न थी
छूकर जिसे न ‘शान्त’ हुए हों दिलो-दिमाग
गंगा में आज तक उठी ऐसी लहर न थी

देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ