एक लेखक
वह एक लेखक था । उसकी सैकड़ों रचनाएं कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी थी । लेकिन वह स्वभाव से बहुत ही सीधा सादा व विनम्र था । एक दिन फेसबुक पर कुछ सर्च करते हुए उसे लघुकथाओं का एक मंच दिखा जिसे उसने जॉइन कर लिया । और कई साल पहले लिखी हुई एक लघुकथा उसने उस साहित्यिक मंच पर पोस्ट कर दिया ।
कुछ पाठकों की तारीफ के बीच ही एक पाठक ने प्रतिक्रिया लिखी ‘ यह किसी दूसरे की नकल है । ‘ प्रतिक्रिया देखकर लेखक का व्यथित होना स्वाभाविक ही था क्यों कि वह खुद रचनाओं की चोरी व रचनाचोरों के खिलाफ काफी मुखर रहा था । उसके बाद दो तीन और पाठकों की प्रतिक्रिया भी इसी तरह से आई जिसका उस लेखक ने विनम्रता से जवाब दिया और सभी से यह विनती भी की कि आप मेरी रचना को जिसकी नकल बता रहे हैं वह मूल रचना तो दिखाइए ताकि मुझे भी पता चले कि वास्तविकता क्या है ? लेकिन उस पाठक के पास कोई जवाब नहीं था और न ही था कोई सबूत मूल रचना के समर्थन में । वह पाठक कोई और नहीं उसी मंच पर सक्रिय एक नामचीन लेखक था । वह भला किसी नए लेखक को क्यों न परेशान करे ? और फिर उसके समर्थन में अंधे समर्थकों की कमी थोड़े न थी ?
लेकिन वह नया लेखक भी कुछ कम नहीं था । उसकी सैकड़ों रचनाएं ऐसी थी जो बहुत ही शिक्षाप्रद व प्रेरक थीं जिसमें उसने मुसीबतों से न डरने व सभी चुनौतियों का जमकर मुकाबला करने की शिक्षा दी थीं । अब वह खुद भला चुनौतियों से कैसे मुंह मोड़ लेता ? उसने उस पाठक सहित उसके सभी साथियों को चुनौती देते हुए अपनी बात साबित करने के लिए कहा । आरोप लगनेवाले पाठक ने उसी विषय पर एक दुसरीं रचना का स्क्रीनशॉट अपनी प्रतिक्रिया में जोड़ दिया । वह कहानी और उस लेखक की कहानी में कहीं कोई समानता नहीं थी । न कहानी का प्रस्तुतिकरण न कथ्य न शैली और न कहानी का संदेश । फिर भी वह मूर्ख पाठक अपनी जिद्द पर अड़ा हुआ था कि ‘ नहीं ! यह आपकी रचना इसी रचना की नकल है । ‘ उस नए लेखक ने गजब के धैर्य का परिचय देते हुए मंच के दूसरे साहित्यकारों से दोनों रचनाओं का अवलोकन कर के अपनी राय देने का निवेदन किया । कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों ने दोनों रचनाओं का अवलोकन करके उस नए लेखक के रचना की तारीफ की और उसे उस पाठक का अनर्गल प्रलाप मानकर सब कुछ भुला देने की सलाह दी । वरिष्ठ साहित्यकारों की टिप्पणी से आहत उस पाठक ने उस नए लेखक पर तंज कसते हुए अपने पूर्व की सभी प्रतिक्रियाएं मिटा दीं ।
अब बारी आती है कुछ तीसमारखां टाइप साहित्यकारों की जो उस पाठक के ज्यादा करीबी रहे होंगे । बिना तथ्यों की परख किये एक साहित्यकार ने उस लेखक से सीधे सवाल पूछ लिया ‘ सुना है तुमने किसी की रचना चोरी की है । ‘ उस नए लेखक ने उसकी वरिष्ठता का ध्यान रखते हुए उसे दोनों रचनाओं का अवलोकन करके अपना निर्णय सुनाने का निवेदन किया । कुछ ही देर बाद उस लेखक का संदेश आया ” आप सही हो । दोनों कहानियों में कहीं कोई समानता नहीं है । विषय एक होने से वह रचना किसी की नकल नहीं कही जा सकती । ‘
उस नए लेखक को और क्या चाहिए था । उसे अपना वही आत्मसम्मान ही तो चाहिए था जो उसकी दृढ़ता व निर्भीकता की वजह से उसे ससम्मान मिल चुका था । अब लेखकों का एक बड़ा वर्ग उसके साथ था और वह साहित्य साधना के अपने पथ पर अग्रसर था ।
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, लेखक का धैर्य और आत्मसम्मान की भावना सराहनीय है. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
भाईसाहब, ऐसा लग रहा है कि आप सत्यकथा बयान कर रहे हैं. हमारे एक रचनाकार के साथ ऐसा हो चूका है. वे बहुत अच्छे कवि हैं और रोज एक दो अच्छी कवितायेँ लिखना उनके लिए बहुत मामूली बात है.
लेकिन एक बार हमारी एक अन्य रचनाकार ने उनकी एक कविता पर आरोप लगाया कि यह किसी अन्य की कविता की नक़ल है. मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैंने दोनों कविताओं को मंगाया और मिलाकर देखा तो कहीं कोई साम्य नहीं था. एक-दो भाव जरूर मिल रहे थे जो कि स्वाभाविक है.
इसलिए मैंने इन आरोप को अस्वीकार किया और दोनों रचनाएँ सभी रचनाकारों के सामने रखकर निर्णय देने को कहा. अंततः सबने मन लिया कि वास्तव में यह कोई नक़ल नहीं है. आरोप लगाने वाली रचनाकार ने भी यह स्वीकार कर लिया.
मुझे ख़ुशी है कि मैं अपनी जागरूकता से एक अच्छे रचनाकार का सम्मान बचाने में सफल रहा.
मेरा यह दृढ़ मत है कि जबतक चोरी सिद्ध नहीं होती तबतक हमें सभी रचनाकारों का सम्मान करना चाहिए. दो-तीन अवसरों पर चोरी सिद्ध होने पर मैंने अपनी पत्रिका से रचनाकारों को हटाया भी है.
इस कहानी के लिए आपको धन्यवाद.