गीतिका
बदलना पड़ेगी अब मुझको आदत मेरी
बदल जाऊँ बस इतनी है इबादत मेरी
देता सबको है वो परबर दिगार लेकिन
इम्तेहान कितने लेगा शिकायत मेरी
एक तरफ़ा प्यार की सजा ये मिली हमें
ठुकरा के मुझे चली गई मुहब्बत मेरी
कोई नही चोट पहुँचा पाये कभी मुझको
जब तक न हो उसको खुद इजाजत मेरी
बल से बुद्धि होना बेहतर है सदा ‘कोयल’
देखना है बड़ी बुद्धि है या है ताकत मेरी
— दीपिका गुप्ता ‘कोयल’