लडकियां बोलने लगी हैं
सहमकर सिर नीचे झुकाना
बोलने में हिचकिचाना
आँखों में ही डर जाने वालीं
लडकियां बोलने लगी हैं !
जितनी दबी उतनी उठ गयी
जितनी डरी उतनी संभल गयी
खुलकर जीने की चाह में
लडकियां बोलने लगी हैं !
कबतक घुट-घुट कर जीतीं
कबतक सह-सह कर रोतीं
रस्मों का बोझ उतारने के लिए
लडकियां बोलने लगी हैं !
व्याकुल मन की व्यथा सुनाने
अपने को परिपक्व बनाने
काँपते लफ़्ज़ों को छोड़कर
लडकियां बोलने लगी हैं !
— जयति जैन “नूतन”
सुंदर लेखन