इतना अधिकार चाहिए
इतना अधिकार चाहिये
जब चलूँ मैं राह पर अकेले तो ,
तुम थाम लेना मुझे ,
जब कोई बुरी नज़र से ताके मुझे,
तो तुम उस नज़र से बचा लेना मुझे
एक हमसफ़र बनकर नही,
एक दोस्त बनकर रहना संग मेरे,
मेरे हर दर्द को बांट लेना,
कभी बात चुभ जाए अगर मेरी,
कभी रूठ कर जाना नही,
पहले अकेली थी भीड़ में,
अब तेरे साथ ज़िन्दगी भी,
तन्हा गुजरती नही है,
मन मे कोई भी बात हो अगर,
तो कह जरूर देना,
नासमझी तो बहुत है मुझमें,
बस तुम समझ लेना मुझे,
इतना अधिकार चाहिये,
धूप जो छू कर गुजरे अगर,
तो तुम छांव बन जाना,
अगर कोई रंग चढ़े मुझ पर जो,
वो तेरी मोहब्बत का होना चाहिये,
तेरी मोहब्बत के भरोसे ही जी रही हूं मैं,
तेरे संग जीना है मुझे,
बस इतना अधिकार चाहिये,
— उपासना पाण्डेय “आकांक्षा”
हरदोई (उत्तर प्रदेश)