कविता – घूंघट के पट खोल
यह नई सदी तुम्हारा अभिनन्दन करती ।
उठो घूंघट के पट खोल आगे बढ़ो तुम।।
न रुको न झुको लक्ष्य तक चलते चलो।
साहस से कदम से कदम मिलाते चलो।।
सहनशीलता का दुरुपयोग खूब हुआ।
अब सर उठा कर जीना सीख लो तुम।।
हर क्षेत्र में तुम कामयाब हो ऐसा करो।
दुनियाँ में अपना फिर रोशन नाम करो।।
सीता सावित्री गार्गी मदालसा मैत्रेयी ।
आर्यावर्त की महान नारियों जैसी बनो।।
पद्मनी लक्ष्मी बाई झलकारी सी रहो।
हर अत्याचारी को सबक सिखाओ।।
सदियों से शोषण में पली आंसू बहाए।
घुट – घट कर जीवन अब न बिताओ।।
उन्मुक्त गगन में अब विचरण करो तुम।
रूढ़ियों की दासता से अब आज़ाद हो।।
— कवि राजेश पुरोहित