ग़ज़ल
अनसुनी करता नहीं उसको सुनाकर देखना।
हौसला रखकर ख़ुदा को सच बताकर देखना।।
मुंतज़िर तेरी निगाहें रूह भी बेचैन कुछ।
है हसीं ये ज़िन्दगी तू दिल लगाकर देखना।।
साजिशें कब तक चलेंगी तीरगी की नूर पर।
कोहरे के ज़िस्म को सूरज दिखाकर देखना।।
ऐ ख़िज़ा चुन ले ज़रा अब आशियाँ अपना कहीं।
रूह में यादें बसी हैं सर झुकाकर देखना।।
है यही फरियाद तुझसे आबशारे – ज़िन्दगी।
खुश रहे आलम ‘अधर’ ख़ुद को मिटाकर देखना।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’