“कुंडलिया”
चक्रवात सा दिख रहा, घिरा हुआ इंसान
शायद यह संकेत हो, कुदरत का अवमान
कुदरत का अवमान, चित्र तरुवर उग आया
कहीं देव का रूप, उभर सपने में छाया
कह गौतम कविराय, सुनें गुनें इनकी बात
यूँ ही नहीं भराय, झोंका झरे चक्रवात॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी