इंसानियत – एक धर्म ( भाग – अडतालिसवां )
थोड़ी ही देर में वह भारी वाहन धीरे धीरे चलते बंगले के गेट के सामने आ गया । जिस तरह हवा के तेज झोंके से शांत पानी में भी लहर पैदा हो जाती है शांत खड़ा जनसागर भी लहर की मानिंद पीछे की तरफ हट गया । वाहन के पीछे के हिस्से में जो कि एक प्लेटफॉर्म जैसा प्रतित हो रहा था एक मंच बनाया गया था जो चारों तरफ से फूलों की लड़ियों से सुसज्जित किया गया था और उस मंच पर एक शव पेटिका थी जिसमें शहीद अमर का पार्थिव शरीर रखा हुआ था । ससम्मान लिपटा हुआ तिरंगा उस गमगीन माहौल में भी देशभक्ति की अलख जगा रहा था । बंगले के गेट के सामने पहुंच कर वह भारी वाहन गेट से थोड़ा आगे बढ़ गया । मुस्तैद सिपाहियों ने उस वाहन पर लदी वह शव पेटिका जिसमें शहीद अमर का पार्थिव शरीर था ससम्मान अपने कंधों पर लाद लिया और सावधानी से चलते हुए बंगले के लॉन में आये जहां कर्नल सत्यप्रकाश का पार्थिव देह बरामदे से हटाकर लॉन में बनाये गए एक अस्थायी मंच पर पहले ही ससम्मान रखा हुआ था । उनके पार्थिव शरीर के बगल में ही शहीद अमर का पार्थिव शरीर भी ससम्मान रख दिया गया और सिपाहियों ने सलामी देकर वहां से पीछे हटकर अपना स्थान ग्रहण कर लिया ।
रोती बिलखती नंदिनी ने एक नजर अमर के पार्थिव शरीर की तरफ देखा और फिर उसकी तरफ आगे बढ़ने की कोशिश में वह उस तक पहुंचने से पहले ही किसी कटे हुए पेड़ सी जमीन पर भहरा गयी । एक बार फिर वह बेहोश हो गयी थी । उसके गिरते ही फौजी अस्पताल की परिचारिकाएँ उसकी तरफ दौड़ीं और आनन फानन उसे स्ट्रेचर पर लादकर उसके ही कमरे में उसे पहुंचा दिया गया जहां अभी वह कुछ ही देर पहले थी । अस्पताल की नर्सें उसकी तीमारदारी में लग गईं ।
अब यहां शहर के गणमान्य व्यक्तियों के अलावा बड़े अधिकारियों व फौजी अफसरों का जमावड़ा लग चुका था । इसी भीड़ में से एक एक कर दोनों अमर शहीदों के पार्थिव शरीर का दर्शन कर ये गणमान्य अतिथि उन्हें अपनी अंतिम विदाई के रूप में श्रद्धासुमन अर्पित करते और फिर भरे गले से अपने पूर्व निर्धारित जगह पर जाकर बैठ जाते । विशेष अतिथियों के बाद बाहर उमड़ रही भीड़ के लिए अंतिम दर्शनों की व्यवस्था की गई थी । सभी कुछ सुनियोजित तरीके से चल रहा था । पूरा इन्तजाम सेना के अधिकारियों ने संभाल रखा था ।
सूर्य अब अपनी यात्रा पूरी करते हुए सिर पर आ गए थे । गर्मी और उमस के बावजूद भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही थी । इसी गहमागहमी में दिन का तीसरा पहर शुरू होने का था जब अधिकारियों ने पूरे सैनिक सम्मान के साथ दोनों अमर शहीदों के अंतिम यात्रा के लिए निर्देश जारी कर दिए । इस बीच मंत्री महोदय व स्थानीय नेताओं ने भी अपना फोटो सेशन जारी रखा । राज्य के मंत्री ने राज्य सरकार की तरफ से शहीद अमर सिंह की विधवा को दस लाख रुपये की नकद राशि सहायता स्वरूप देने की घोषणा की । केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने भी केंद्र सरकार की तरफ से पांच लाख रुपये की नकद राशि व रक्षा मंत्रालय की तरफ से भी भारी भरकम राशि की घोषणा की गई । हर घोषणा के साथ मीडियावालों के कैमरे चमक उठते । गमगीन चेहरे के साथ नेता सहायता की घोषणा करते और कैमरे बंद होते ही उनके चेहरे की चमक बढ़ जाती । घूम कर साथ बैठे दूसरे नेताओं व अधिकारियों की तरफ यूँ देखते मानो कह रहे हों ‘ ठीक किया न ? आखिर हम भी देशभक्त हैं । ‘
नंदिनी होश में आ चुकी थी । लेकिन अब निर्विकार मुद्रा में बैठी अपने आसपास के वातावरण का निरीक्षण कर रही थी । ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आँखों का पानी सूख गया हो । उसे अब परी की फिक्र होने लगी थी । रात के बाद से उसने परी की एक झलक भी नहीं देखी थी । कहाँ होगी मेरी बच्ची ? उसका ख्याल आते ही वह अचानक चीख पड़ी ” परी ……..! ” और फिर अगले ही पल डॉक्टर रस्तोगी ने कमरे में प्रवेश किया । नन्हीं परी उनकी गोद में चिपकी हुई थी । नंदिनी को बैठी देखकर परी डॉक्टर रस्तोगी की गोद से मचलकर उतर गई और नंदिनी की गोद में सिमट गई । नंदिनी ने उसे अपनी बाहों में भींच कर सीने से लगा लिया । उसकी आंखों से बेतहाशा गंगा जमुना की धार फ़ूट पड़ी । अपने नन्हें हाथों से नंदिनी की आंखें पोंछती परी भी रुआंसी हो गयी । ” आपको क्या हो गया था मम्मा ? आप हमसे बात नहीं कर रही थी ? हमसे नाराज हो गयी थी आप ? हम बार बार आकर आपको ही देख रहे थे लेकिन आप तो कुछ बोल ही नहीं रही थीं ? हम कितना डर गए थे मम्मा पता है आपको ? “
अपनी बाहों का घेरा नन्हीं परी के गिर्द कसते हुए नंदिनी एक बार फिर बिलख पड़ी थी । उसे समझ नहीं आ रहा था वह नन्हीं परी को कैसे बताये उसके साथ नियति ने कितना भयानक खेल खेल दिया है । अभी वह उसे कुछ बताने ही जा रही थी कि परी फिर से बोल पड़ी ” मम्मा ! आप बता क्यों नहीं रही हैं ? दादाजी भी बाहर खुले में सोए हुए हैं । आप भी यहां सोई हुई पड़ी थीं । और बाहर इतने सारे लोग क्यों जमा हुए हैं ? क्या हुआ है मम्मा ? “
” कुछ नहीं बेटा ! कुछ नहीं ! आपके दादाजी भगवान से मिलने जानेवाले हैं न ? इसीलिए इतने लोग उन्हें पहुंचाने आये हैं । ” बताते हुए नंदिनी समझ गयी थी कि परी ने अभी तक अपने पापा शहीद अमर सिंह का पार्थिव शरीर नहीं देखा है । क्या करे ? उसे बताये या नहीं वह इसी असमंजस में थी कि तभी उसके अवचेतन मन ने उसे धिक्कारा ” कैसी माँ है तू ? अपनी ही बेटी को उसके पिता के अंतिम दर्शन से वंचित रखने की सोच रही है ? यह भी नहीं सोचा कि कल को परी जब समझदार हो जाएगी और उसे इस बात का पता चलेगा कि उसकी मम्मा ने उसे अपने पापा के अंतिम दर्शन भी नहीं करने दिए , तब क्या वह तुझसे नफरत नहीं करने लगेगी ? “
बेबस नंदिनी की असमंजस और बढ़ गयी थी । न कुछ सोच पा रही थी और न कुछ समझ ही रही घी । फिर भी उसने मन को समझाना चाहा ” ईतनी छोटी तो है मेरी बच्ची ! अभी इसे जीने या मरने के बारे में क्या पता ? जैसे जैसे थोड़ी बड़ी होती जाएगी और समझने लगेगी इसके पापा के बारे में झूठे बहाने बनाकर इसके बचपन को हौसला दिया जा सकता है । इसके विपरीत अगर आज इसे यह समझा दिया गया कि अब इसके पापा नहीं रहे तो इसके बाल मन पर विपरीत असर भी पड़ सकता है । उसका मनोबल टूट सकता है । जैसे जैसे बड़ी होगी मन में हीन भावना भी पनप सकती है । “
मन में उठ रहे विचारों को झटकते हुए उसने उठना चाहा लेकिन उठ नहीं सकी । पैरों में उठने की शक्ति शेष नहीं थी । अभी तक उसने अमर का दीदार नहीं किया था और उसकी तस्वीर मन में उभरते ही फिर एक बार आंसुओं का सैलाव फूट पड़ा उसकी नजरों से । उसका जी चाह रहा था अभी जाए और अमर से लिपट जाए । जी भर कर रो ले लेकिन फिर उसके कदम आगे नहीं बढ़े । एक पत्नी की भावनाओं पर माँ की ममता भारी पड़ रही थी । बड़ी बेबस सी महसूस कर रही थी वह खुद को । क्या करे ?
तभी पास पड़ोस की कुछ महिलाएं कमरे में घुसीं । उनमें से एक जो लीडर टाइप की महिला लग रही थी साथी महिलाओं से बोली ” संभाल के ! तुम लोग खामोश रहो मैं बात करती हूं । “
अभी वह कुछ कहती कि बाहर से आ रही जयकारे और नारों की शोर में उसकी आवाज दब कर रह गयी । बाहर शायद अंतिम यात्रा की तैयारी पूरी हो गयी थी ।
क्रमशः
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, ऐसी दुखद बेला के समय भी फोटो सेशन! इंसानियत को मुखर करती हुई नंदिनी की दशा आंखें नम कर गई. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
बढ़िया