व्यंग्य – अब नो उल्लू बनिंग !
महान दार्शनिक सुकरात ने कहा था- ‘जो व्यक्ति मूर्खता करने बाद अपने आप को मूर्ख माने दरअसल वो सबसे बड़ा ज्ञानी है। और जो व्यक्ति मूर्खता करने के बाद भी अपने आप को मूर्ख नहीं माने दरअसल वो सबसे बड़ा मूर्ख है।’ अब इस कथन के आधार पर सोच लीजिए कि आप मूर्ख है या ज्ञानी ? समझे जानी ! अगर ज्ञानी होते तो पांच-पांच साल के बाद मूर्ख बनने के लिए और मूर्ख बनाने के लिए अपने में से ही किसी एक को मूर्ख बनाने का ठेका नहीं सौंप देते ? खैर ! मूर्ख बनने के भी अपने मजे है। जो मूर्ख होता है उसे पता नहीं होता कि वो मूर्ख है। वह दुनिया की सारी चिंताओं से मुक्त होता है। और जब इस मूर्खता की आयु लंबी हो जाती है तो उसे ‘पागलपन’ कहते है। और पागल होना मतलब जिंदगी की सारी समस्याओं को विरामचिह्न देकर दूसरों के लिए परेशानियों का प्रश्नचिह्न बनना है। ज्ञातव्य यह है कि मानव को आदिकाल से मूर्ख बनने का जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त है। और हर मानव को अपने जीवनकाल में मूर्ख बनने का स्वर्णिम अवसर भारतीय संविधान के सार्वभौमिक मताधिकार तहत मिलता ही है।
वैसे मूर्ख बनाने की कला में अंग्रेज बहुत ही पारंगत थे। वे खुद को एक दिन मूर्ख बनाते थे और दूसरों को दो सौ वर्षो तक मूर्ख बनाकर रखते थे। मूर्ख बनाने की कला का जन्म भले ही ब्रिटिशों के द्वारा हुआ हो लेकिन मूर्ख बनने की कला का तो जन्म भारत में ही हुआ है। भारतीयों को मूर्ख बनने का ऐसा चस्का लगा कि वे अब मूर्ख बने बिना रह नहीं सकते। ये कहे कि यहां लोग मूर्ख बनने के आदी है। वायदों के पांव पर टिकी कुर्सी पर सियासत की गादी है। भारतीयों को मूर्ख बनने के लिए किसी एक विशेष दिन की आवश्यकता नहीं होती है। जिस तरह भारत की संस्कृति में 365 दिन त्योहार और मेले होते है, उसी तरह यहां 365 दिन मूर्ख दिवस भी होता है। मजे कि बात यह है कि मूर्ख बनने और बनाने का क्रम तो वहीं है। लेकिन मूर्ख बनाने के तरीकों में समय वृद्धि के साथ कई नवीनताएं आ चुकी हैं। पहले भारतीयों को अंग्रेज उनके ही घर में जबरन कर वसूली कर मूर्ख बनाते थे। और अब लोकतंत्र में पांच ग्राम चिप्स के साथ पांच सौ ग्राम हवा बेचकर लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। और हम काले अंग्रेज चिप्स के चटकारे लेते हुए मूर्ख बनने के मजे ले रहे हैं। है ना कमाल ? अंग्रेजों ने अपने समय में देश में अंग्रेजी को रानी का दर्जा दिया और हिन्दी को उसके ही घर में नौकरानी जैसा बर्ताव कर हमें मूर्ख बनाया। और आज जब देश मूर्खता के तथाकथित अंग्रेजी व्यूह से आजाद माना जा रहा है तो भी हम काले अंग्रेज अब तक मूर्ख बनकर अंग्रेजी की आशिक़ी में ही अपना सारा रूपया बर्बाद करते जा रहे हैं। है ना अतुल्य भारत !
बाबूमोशाय ! दुनियादारी की रेल में मतलब के लिए मूर्ख बनाने का खेल है। कोई मूर्ख बनाने में पास तो कोई फेल है। चुनावी नेता से लेकर सिनेमा के अभिनेता तक और दूध वाले से लेकर दारू वाले तक सब मूर्ख बना रहे है। फेसबुक पर लड़के लड़कियों की फेंक आईडी बनाकर लड़को से ही चैटिंग के बयाने प्रेम-व्रेम की बातें करके मूर्ख बना रहे है। तो वहीं हमारे देश के होनहार बाबा लाल और नीली-पीली चटनियों से किस्मत बदलने का नुस्खा बता रहे है। कई बाबा तो बाबियों को गुप्त रहस्य बताने के बहाने गर्भवती तक कर रहे है ! इस रहस्य का रहस्य बाबियों को नौ महीने बाद पता चल रहा हैं। सरकार डिजिटल इंडिया में भले ही भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के दावे कर रही हो लेकिन यह डिजिटल इंडिया भी मूर्ख बनने का हक हमसे नहीं छिन सकता। क्योंकि अब तक ऐसे आधार कार्ड का अविष्कार ही नहीं हुआ जो मूर्ख बनने पर रोक लगा सके। तभी तो नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया में नीरव मोदी और विजय माल्या ने मूर्ख बनाने के सारे कीर्तिमान भंग कर डाले। यदि आप अभी भी इस भ्रम में जी रहे है कि आप लोकतंत्र में तो यह सबसे बड़ी मूर्खता है। जनाब ! इसे ठोकतंत्र या मूर्खतंत्र कहिए ! अब नो उल्लू बनिंग।