वर्तमान में फेसबुक, वाट्सअप ने टॉकीज, टीवी,वीडियो गेम्स, रेडियो आदि को काफी पीछे छोड़ दिया।कहने का मतलब है कि दिन औऱ रात इसमे ही लगे रहते है।यदि घर पर मेहमान आते वो आपसे कुछ कह रहे।मगर लोगो का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सअप पर जवाब देने में और उनकी समझाइश में ही बीत जाता।मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते है।घर के काम तो पिछड़ ही रहे।फेसबुक,वाट्सअप का चस्का ऐसा की यदि रोजाना सुबह शाम आपने राम राम या गुड़ मोर्निंग नही की तो नाराजगी।इसका भ्रम हर एक को ऐसा महसूस होता कि मैं ही ज्यादा होशियार हूँ।अत्याधिक ज्ञान हो जाने का भ्रम चाहे वो फेक खबर हो ।उसका प्रचार भले ही खाना समय पर ना खाएं किन्तु खबर एक दूसरे को पहुंचाना परम कर्तव्य है।पड़ोसी औऱ रिश्तेदार अनजाने होजाते ।मगर दूर के ढोल सुहावने लगते।फेसबुक और वाट्सअप की दुनियां में मालवी कहावत कुछ यूं है-” साँप घर साँप पावणा, बस जीप (जुबान) की लपालपी”
यानि फेसबुक ,वाट्सअप आभासी दुनिया की सैर करवाते।यदि भूल से फेसबुक, वाट्सअप वाले मित्र सामने खड़ा या पास बैठा हो पहचान करने में परिचय देना ही होता है।क्योंकि इनके दोस्तो की संख्या हजारो में पहुँच जाती।आजकल असली घी काफी महंगा ऒर शुद्द नही मिलता। जनरल नॉलेज भी आउट ऑफ कोर्स।बेरोजगार रोजगार की तलाश में पहले ही परेशान ।सब अब क्या करे ।ये वर्तमान में सब पर हावी है।और मनोरंजन के साधनों को पीछे छोड़ दिया है।जिसके जितने ज्यादा मित्र वो उतना ही सीनियर।कई तो इस कला में इतने माहिर हो गए कि रचनाएं चुराकर अपने कवि होने की पुष्टि तक कर लेते।बेचारा ओरिजनल कवि अन्य लोगो को चोरी घटना का दुखड़ा फेसबुक ,वाट्सअप पर बाटता रहता है।मगर ,कुछ नही होता।और कई तो फ़िल्म के स्टार के फोटो लगाते ताकि लोग समझे कि फ़िल्म स्टार में अपनी पहचान है।मगर्वो मिकलता कुछ और ही है।इनकी पहचान के लिए आधार कार्ड जो भूमिका निभाना चाहिये वो भी रास्ता भूल जाता है।पहले के जमाने मे हाथो में जप की माला होती और लोग अपने आराध्य का स्मरण करते थे।किंतु आजकल माला की जगह मोबाइल आगया।गांवों में वृक्षों की संख्या से ज्यादा होने के लक्ष्य टॉवर प्राप्त कर रहे है।दुनिया मे विकास होना भी जरूरी है। लोग चाँद पर बसने की सोच रहे और हम चलनी से चाँद को निहार रहे। हर सदस्य के पास मोबाईल औऱ घरों में चार्जर ऐसे लटकते है।मानों पेड़ों पर चमगादड़ लटक रही हो।मोबाइल की फिक्र यदि घर मे कही भूल से रख दिया तो उसकी खोज की चिंता। ये तो हर घरों में रोज ही तमाशा होता है।यानि “बगल मे छोरो ने गाँव मे ढिढोरों”। आप औऱ हम क्या कर सकते । इसके चलन में साथ तो चलना ही होगा।अब चौबीस घंटे मेसे इसकी रियाज में पंद्रह घंटे लोगबाग दे ही रहे है।औऱ दूसरे लोगों को इनके रिकार्ड तोड़ने की लगी है।नींद इनकी आँखों से गायब औऱ नीद से बनने वाले सपने हो गए घूम।सपनों में आने वाली प्रेयसी ना आने से मजनू का दिमाग भिन्ना भोट हो रिया है। भिया।लो अब सुबह होने को है।एक संदेश अग्रिम त्योहारोअवम कार्यक्रमो की अग्रिम शुभ कामनाएं देने को उतावला आ खड़ा हुआ हमारे सुखद जीवन के लिए ।कितनी फिक्र रहती ये तो मानना पड़ेगा।औऱ तो औऱ संदेश में मिठाइयों, सुबह की चाय के फोटो भी संलग्न। खाने के लिये हाथ बढ़ाया तो पीछे खड़ी श्रीमती ने आखिर टोक ही दिया।क्या ज्यादा ही भूख लगी है।
— संजय वर्मा “दृष्टि”