पथभ्रष्ट होती भाजपा….
देश की जनता को मुंगेरीलाल के हसीन सपनें दिखाकर सत्ता में आई भाजपा अब निरंकुश सत्ता पाने की लालसा में कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। आज हालात ऐसे हो चलें हैं कि देशभर में शासन का झंडा गारने को ललायित भारतीय जनता पार्टी अपनी विचारधारा तक से समझौता करने को राजी है। और इसका ताजा उदाहरण यूपी में देखने को मिला जब राम नाम की राजनीति करनेवाली पार्टी ने राम को ही अपशब्द कहनेवाले को गले से लगा लिया। पार्टी लगातार अपनी विचारधारा को दरकिनार कर अपना दायरा बढ़ाने की जुगत में लगी हुई है। फिर इसके लिये उन्हें चाहे दागियों को ही पार्टी में शामिल क्यों न करना पड़े। पार्टी हरेक हथकंडे को अपनाते हुए अन्य पार्टियों के बड़े और कद्दावर नेताओं को अपने पाले में कर रही है। भाजपा द्वारा भगवान राम का अपमान करनेवाले नरेश अग्रवाल को पार्टी में शामिल किया जाना पार्टी की सबसे बड़ी नैतिक हार है। क्योंकि पार्टी का सबसे बड़ा राजनैतिक आधार रामजन्मभूमि ही है। कहीं ना कहीं भगवान राम और राममंदिर पर ही भारतीय जनता पार्टी की पूरी आधारशिला टिकी हुई है। गठन से लेकर आजतक पार्टी इसी मुद्दे को भूनाते हुए विधानसभाओं से लेकर संसद तक में अपनी सीट बढ़ाते आई है। ऐसे में सार्वजनिक रुप से भगवान राम का अनादर करनेवाले नरेश अग्रवाल को पार्टी में लाया जाना पार्टी की विचारधारा की हार है।
2014 के आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचारमुक्त भारत का नारा देकर ही पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। तब उन्होंने देश की जनता से वादा किया था कि न वे खुद खायेंगे और न किसी को खाने देंगे। उन्होंने देश की जनता को विश्वास दिलाया था कि उनकी सरकार आने से पहले जो भी लोग भ्रष्टाचार में शामिल थे उन सभी को जेल भेजा जाएगा और उनपर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि शुरू शुरू में ऐसा हुआ भी पर अब इनसब पर पार्टी की महत्वाकांक्षा हावी हो गई और एनडीए की सरकार से पहले जिन लोगों ने भी जनता को धोखा देकर अकूत संपत्ति तैयार की उन सभी को पार्टी की सदस्यता दिलाकर एक तरह से क्लीनचिट दे दिया गया। अब उन नेताओं खिलाफ चल रहे जांच को शिथिल कर दिया गया है और उन्हें एक तरह से मौका दिया गया है कि वे पार्टी की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में पार्टी नेतृत्व का सहयोग करें। इस कड़ी में शारदा चिटफंड घोटाले में आरोपी और तृणमूल कांग्रेस नेता मुकुल रॉय का नाम सबसे ऊपर आता है। जिन्हें भाजपा ने पार्टी ज्वाइन करने के बाद वाई श्रेणी की वीआईपी सुरक्षा तक मुहैया करा दी है।दशकों तक कांग्रेस के वफादार माने जाने वाले एसएम कृष्णा भी इसी फेहरिस्त में शामिल हैं। कर्नाटक में जिनके मुख्यमंत्री रहते बीजेपी ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगा दी थी। यहां तक कि जब उन्होंने विदेश मंत्री रहते दूसरे देश के मंत्री का भाषण पढ़ दिया था। तब उनकी भूल का प्रधानमंत्री मोदी ने खूब मजाक उड़ाया था। अब वही एसएम कृष्णा बीजेपी का हिस्सा है।
और तो और एक वक्त में उत्तराखंड के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के खिलाफ भ्रष्टाचार के तीव्र आरोप लगाते हुए भाजपा ने मुख्यमंत्री से उनके इस्तीफे तक की मांग कर दी थी और उनके खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। पर आज वे भी बीजेपी के अहम नेता हैं। यह सूची यहीं समाप्त नहीं होती बल्कि इस सूची में असम के कद्दावर नेता हिमंत विश्वशर्मा जैसे अन्य कई नेताओं के नाम शामिल हैं जिनपर भाजपा ने स्वयं भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उन्हें कठघरे में खड़ा किया था और बाद में वे भाजपा में जाकर पाकसाफ हो गए। अब बीजेपी की इस नीति से जनता काफी असमंजस में है। उन्हें ये हमझ नहीं आ रहा कि जो नेता अन्य पार्टियों में रहने के दौरान भ्रष्टाचारी थे, वो भाजपा में आते ही पवित्र कैसे हो गए? संभवतः पार्टी की ये नीति प्रधानमंत्री की नीयत पर भी सवालिया निशान खड़ा करती है; जो प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के हिसाब से सर्वथा अनुचित है।
अब बात करते हैं दशक के सबसे बड़े नारे की। जी हां, प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 के आम चुनावों के दौरान कांग्रेसमुक्त भारत का आह्वान किया था। और जनता ने उनके इस आह्वान को अपना पूर्ण समर्थन भी दिया। पर उनके इस अभियान को बाद में उनके ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने ठेंगा दिखा दिया। वे कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को भाजपा में ले आए और भारतीय जनता पार्टी का ही कांग्रेसीकरण कर दिया। फिर चाहे वो उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा हो, या हरक सिंह रावत या फिर पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य हो। यूपी से लेकर दिल्ली तक और असम से लेकर गुजरात तक भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देशभर में सत्ता हथियाने के उद्देश्य से कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ताओं को अपने पाले में करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। और यह एक तरह से सिद्धांतवादी पार्टी का तमगा लगाकर घुमनेवाली बीजेपी के लिए एक सैद्धांतिक पतन ही है।
इन सबके बीच भाजपा द्वारा सिर्फ दो सीट जीतकर मेघालय में सरकार बनाना अपने आप में एक आश्चर्य का विषय है। साथ ही आरुणाचल प्रदेश में अपने कूटनीतिक छल-बल का प्रयोग करते हुए कांग्रेस की सरकार का तख्ता पलट कर और कांग्रेस के विधायकों का दल बदल करवाकर प्रदेश में भाजपा की सरकार बना लेना बाजपेयी के आदर्शों का हनन है। पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को अपना आदर्श पुरुष मानती है, पर आज वही पार्टी सत्ता की महत्वाकांक्षा में उनके आदर्शों का माखौल बना रही है।
मोदी-शाह की जोड़ी गठबंधन धर्म भी नहीं निभा पा रही। तभी एक के बाद एक सभी सहयोगी पार्टियां भाजपा से किनारा करने की ताक में जुटी हैं। फिर चाहे वह शिवसेना हो, टीडीपी हो या फिर पीडीपी जैसी पार्टियां। भाजपा के साथ उनकी सभी सहयोगी पार्टियां असहज महसूस कर रहीं हैं। और राजनीति के धुरंधर माने जानेवाले अमित शाह उन्हें विश्वास दिला पाने में असमर्थ साबित हो रहें हैं। और भाजपा के लिये ये एक राजनैतिक हार है। क्योंकि जहाँ वे अपने सहयोगियों को अपने विरुद्ध खड़ा होने से नहीं रोक पा रहें हैं वहीं उन्हें रोकने के लिये राजनीति के अखाड़े में एक दुसरे की शत्रु पार्टियां भी अब एक साथ आ रहीं हैं और भाजपा को जबरदस्त पटखनी भी दे रहीं हैं। वैसे राजनीति में हार जीत लगी रहती है पर किसी भी पार्टी के लिए उसके सबसे अहम और गढ़ मानी जानेवाली सीट का हारना एक बड़ी क्षति के तौर पर ही देखा जाता है। और फिर वह सीट अगर स्वयं मुख्यमंत्री की हो तो उस सीट की हार एक बहुत बड़ी हार मानी जाती है।
उपचुनावों में भाजपा की करारी हार इस बात का सबूत है कि जनता ने उनकी नीतियों को अस्वीकार करना आरंभ कर दिया है। जहाँ एक ओर जनता ने मोदी के सभी फैसलों में उनका साथ दिया और देशहित में किये गए बदलावों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया तो वहीं अब बीजेपी के चारित्रिक पतन को भी दरकिनार कर रही है। बीजेपी अब अटल-आडवाणी युग की तरह सिद्धांत पर चलनेवाली पार्टी नहीं रह गई है। समय के साथ मोदी-शाह युग में वह महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ रही है। भाजपा अब निरंकुश सत्ता के लोभ में विपरीत दिशा में आगे बढ़ने को तत्पर है, जिससे उसके समर्थकों में खासा निराशा दिख रही है। वे समझ नहीं पा रहें हैं कि भाजपा के नामपर अब उन लोगों को कैसे समर्थन दें जिनके विरुद्ध उन्होंने भाजपा को खड़ा किया था। भाजपा समर्थकों ने एक अरसे से जिन लोगों के खिलाफ आवाज बुलंद की अब वे सभी बीजेपी परिवार का हिस्सा हैं। ऐसे में सिद्धांत और विचारधारा से छिटक रही भारतीय जनता पार्टी भी अन्य सिद्धांतहीन पार्टियों की तरह ही विचारधाराहीन पार्टी बनने की दिशा में अग्रसर हो रही है। और संभवतः यही भारतीय राजनीति का सबसे बुरा वक्त है।
मुकेश सिंह
बीजेपी अब अटल-आडवाणी युग की तरह सिद्धांत पर चलनेवाली पार्टी नहीं रह गई है
बहुत सही कहा भैया जी BJP अपने की अजेय समझने लगी थी झटका जरुरी था