गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

छंद- आनंदवर्धक (मापनीयुक्त) मापनी- 2122 2122 212 पदांत – लगी , समांत- आने , पदांत-लगी

ऋतु बसंती रूठ कर जाने लगी

कंठ कोयल राग बिखराने लगी

देख री किसका बुलावा आ गया

छाँव भी तप आग बरसाने लगी॥

मोह लेती थी छलक छवि छाँव की

अब सजन सी रूठ तरसाने लगी॥

लुप्त होती जा रही प्रति गाँव की

थी गज़ब रंगत हवा गाने लगी॥

हो चला कितना निराला साजना

महफ़िलें अब चमन दिखलाने लगी॥

यदि कभी फुरसत फले तो आ सुनो

गीत यादों की मधुर भाने लगी॥

देख गौतम क्या वहीं खलिहान है

क्या जमीं पर फसल उग आने लगी॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ