सामाजिक

लेख– पुलिस तंत्र की खामियां दूर होने पर ही अपराध मुक्त बनेगा प्रदेश

अगर किसी राज्य या देश में अपराधिक प्रवृत्ति बेलगाम हो जाएं। तो इसका सीधा सा अर्थ है पुलिसिया तंत्र कमज़ोर औऱ शिथिल पड़ गया है, और अगर पुलिस व्यवस्था कमज़ोर या निष्क्रिय पड़ गई। तो समाज आक्रांता और भय की तरफ़ कूच कर जाएगा। मध्यप्रदेश की रहनुमाई व्यवस्था बीते कुछ वर्षों में सामाजिक सुधार की दिशा में व्यापक स्तर पर सुधारात्मक पहल का हिस्सा बनी है, तो वहीं कमज़ोर पुलिस तंत्र ने समाज में भय औऱ बिगड़ते सामाजिक वातावरण का माहौल निर्मित किया है। जिसको लेकर अब चिंतित सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हैं। अगर सूबे की बिगड़ती क़ानून व्यवस्था के बारे में खोजबीन करें। तो यह दृष्टिगोचर होगा, कि पिछले कुछ समय से सूबे में महिलाओं और बच्चों के प्रति सामाजिक माहौल काफ़ी प्रतिकूल हो चला है। महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के मामलों में आज के वक्त में प्रदेश पिछड़े औऱ जंगलराज की उपाधि से सुशोभित राज्यों बिहार और उत्तरप्रदेश के समकक्ष पहुँच रहा है। तो यह सूबे के नीति-नियंता के लिए चिंता का विषय तो जरूर होना चाहिए। जिस तरफ़ अब अगर सूबे की रहनुमाई व्यवस्था नज़र उठाकर देखने को तत्पर दिख रही है, तो यह स्वागतयोग्य क़दम है सूबे को अपराध मुक्त बनाने की दिशा में।

बीते दिनों मध्यप्रदेश सूबे में अपराध के ग्राफ़ को कम करने और पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कड़ा संदेश मुख्यमंत्री ने दिया। उन्होंने कहा, कि मुझे अब सिर्फ़ एक्शन चाहिए। जिसके लिए पुलिस अधिकारियों को सात दिन का समय दिया। विपक्ष भले आरोप लगा रहा कि पुलिस को सक्रिय और परिणामदायक इसीलिए बनाने की बात अब हो रही, क्योंकि चुनाव सिर पर है। कुछ भी हो लेकिन देर आएं, दुरस्त आएं। अगर पुलिसिया तंत्र में सुधार के लिए अल्टीमेटम सूबे की रहनुमाई व्यवस्था ने जारी कर दिया है। तो इसका फ़ायदा तो अवाम को होगा ही। मध्यप्रदेश सरकार ने जनमहत्व के विषयों पर अपने कार्यकाल में काफ़ी कार्य किए हैं। फ़िर भी कुछ क्षेत्र में अभी सुधार की भरसक गुंजाइश है। जिसमें कृषि, राजस्व के साथ पुलिस व्यवस्था है। आज अगर यह कहा जाए, कि रहनुमाई तंत्र की अनदेखी की वज़ह से पुलिस व्यवस्था नकारापन का शिकार हो गई है। तो यह कहना ग़लत न होगा। सूबे में पुलिस तंत्र की शिथिलता औऱ नकारेपन के कुछ कारण ढूढें तो पता चलेगा, कि पुलिसकर्मियों की पदस्थापना में राजनीतिक दखलंदाजी, कार्य के प्रति समर्पण न होना, पुलिस बल में कमी औऱ समाज के जनों के साथ पुलिस तंत्र का जीवंत सम्पर्क न होना है। जिसको दूर करके ही सूबे को अपराध मुक्त प्रदेश बनाया जा सकता है।

बीते दिनों सूबे के मुख्यमंत्री ने जिस लहज़े में पुलिसकर्मियों को सन्देश दिया है, उससे कुछ बिंदु उभरकर सामने आते हैं। पहला कि वर्तमान समय में प्रदेश की पुलिस व्यवस्था सामाजिक सरोकार की दिशा में बढ़ती नहीं दिखती, उसके कार्य करने का ढंग ढीला औऱ बेलगामी से परिपूर्ण है। दूसरा जिन वरिष्ठ अधिकारियों के पाले में पुलिस बल की कार्यप्रणाली को परखने की जिम्मेदारी है, वे भी अपने कर्तव्य के प्रति वफ़ादार औऱ जवाबदेह नहीं हैं। या फ़िर किसी दबाव में रहकर कार्य करने को विवश हैं। आज सूबे में लगातार बढ़ रही छेड़छाड़ की घटनाओं से समाज का हर वर्ग बेहद चिंतित है। समाज में इस विद्रूप मनोवृत्ति के बढ़ने का कारण पुलिस व्यवस्था का नकारापन औऱ समाज की संवेदना का मर जाना है। हमारे लिए यह शर्म की बात है कि अगर मीडिया सर्वें में यह बात निकलकर सामने आती है, कि प्रदेश की राजधानी की 80 फ़ीसद महिलाएं राजधानी को महिला सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित नहीं मानतीं। तो फ़िर अन्य हिस्सों की स्थिति सूबे में क्या होगी, इसकी परिकल्पना सहजता से की जा सकती है। आज सूबे के सामाजिक परिवेश में हत्या, लूट, फ़िरौती, बाल अपराध औऱ महिलाओं पर अत्याचार सभी तरीक़े की घटनाएं आम बात हो चली हैं। तो प्रश्न तो यह भी उठता है, कि प्रदेश में बढ़ते गुंडाराज औऱ अपराध को कम करने के लिए मुख्यमंत्री इतनी देर से सचेत क्यों हुए।

2015 के आंकड़ों से अंदाजा लगाएं, तो स्थिति तो काफ़ी पहले से ख़राब है। 2015 के आंकड़ों के तहत उस वर्ष सूबे में अपहरण के 5,306, ज्यादती के 1,568 और हत्या के 124 मामले दर्ज किए गए। तो वहीं दुष्कर्म की कुल घटनाओं में से 35.7 फ़ीसद तो सिर्फ़ बच्चों के साथ हुई। कहते हैं, किसी प्रदेश की क़ानून व्यवस्था एक दिन में बदहाली का शिकार नहीं होती। वहीं कहानी मध्यप्रदेश की भी है। ये सब बातें ठीक है, लेकिन हमारा ध्यान एक बात की तरफ़ आकर्षित हो रहा। जो भाजपा के अध्यक्ष नन्दकुमार चौहान ने बोली है। उन्होंने कहा, कि कई बार पकड़े गए आरोपियों को छुड़ाने के लिए राजनीतिक लोगों को सिफारिश करनी पड़ती है। यह सच व्यवस्था का कड़वा घूंट है। जिससे निज़ात जब मिलेगी, तभी पुलिस स्वतंत्र होकर काम कर पाएगी। तो क्या समाज को अपराध मुक्त बनाने के लिए जो अल्टीमेटम शिवराज सरकार ने पुलिस व्यवस्था को दी है। वह सफ़ल तो तभी होगा, जब पुलिस की कार्यप्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा। उन्हे स्वतंत्र और स्थाई होकर कार्य करने दिया जाएगा, औऱ पुलिस तंत्र में व्याप्त कमियों को दूर करने के साथ पुलिस बल में बढ़ोतरी की जाएगी। तो क्या सरकारी तंत्र इन कमियों को दूर करके आने वाले दिनों में समीक्षात्मक कार्यवाही करेगा। अगर ऐसा हुआ तो सच में प्रदेश का सामाजिक आभामंडल अपराध मुक्त बन सकता है।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896